आज क्या बताऊँ ...पता नहीं ...कौन सी धारा ..लग जाये ...कहीं भावनाएं
भड़काने का दोषी न बना दिया जाए ....इसलिए जो सच हमने देखा पूरा बताना भी
....थोडा मुश्किल है ....अब हम तो भीड़ के ...सिर्फ एक कोने में थे
....इसीलिए पूरा नहीं पता ...पर जो देखा वो यह की ....पता ही नहीं चला की
क्योँ ..शुरू हो गई ....मार पीट ..लाठी चार्ज .....जब पता चला तो ..बगल
में एक बहन ...अपने दो छोटे बच्चों के साथ ...बैरिकेट ...को किसी तरह पार
कर इस ओर बाहर आने के प्रयास में ...और थोड़ी दूर खड़ा लड़का ....शायद टूटी
हुई ...ऊँगली और हाथ से बहते खून के साथ ...बस चिल्ला रहा है ....किसी तरह
बहन ने बैरिकेट पार किया ...और टूट गई हिम्मत ...भागे,...एक पूरी भीड़ के
साथ ....जिधर रास्ता दिखा ...दो तीन चौराहे के बाद ...एक PCR खड़ी देख
.....ठिठक गए कदम ..की इधर से भी डंडा चलेगा क्या ....पर थोडा ध्यान से
देखा ..तो सिर्फ एक PCR 5 पुलिस वाले .....पीछे सैकड़ों की भीड़ ...सामने
देखा ....तो पुलिस वाले ..खुद डर से काँप रहे थे ...कही भीड़ ...इन पर
गुस्सा न निकाले ....पर ये भीड़ तो ...भारतीय नवजवानों की थी ....(जो चाह
रहा है ......वो equipments जिनसे वो बदल सके भारत की तस्वीर ....पर कोई है
...जो नहीं पूरे देता ...इनके सपने ....तोड़ रहा है इनको .....शायद अपने
फायदे के लिए ....).....इन कांपते हुए पुलिस वालों को छोड़ कर .....बस भागे
....किसी तरह निकल पो बस ....अब पूरा सच ...कौन बतायेगा ...कैसे बताएगा
..बताया जायगा भी नहीं .....कुछ पता नहीं .....पर हमने जो देखा ..कुछ ऐसा
था .....और जो समझा वो यह ...की हमारे देश में .....हम कुछ नहीं चाह सकते
....कुछ नहीं मांग सकते ....आंदोलनों को ...जब कोई छल - प्रपंच से कुचले
.....तो मेरी समझ से ...मर चूका ...लोकतंत्र ..बस चल रहा है संघर्ष
...हमारे - आपके और ..सिफ और सिर्फ ....ताकतवर लोगों से ....(एक दोस्त से
सुने - आज के, उसके experience पर आधारित )..नागेन्द्र शुक्ल
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