राजयोग का मंत्र......रोटी, कपडा और मकान
अब बदल चुका है ....
सर्व प्रथम इस मंत्र को सिद्द किया था Julfikaar Ali Bhutoo ने और फिर इंदिरा गाँधी ने इस्तेमाल किया ...और फिर इसे पोपुलर किया अमितभ बच्चन ने अपनी फिल्म से।
नए ज़माने को नया मंत्र चाहिए और ऐसा लगता है की वो मिल गया है..बिजली, पानी और सड़क।
आज यह प्रस्तुत किया जाता है की मुद्दा बिजली पानी और सड़क है, एसा हमारे शाईनिंग इंडिया के कर्णधारों का कहना है। मैं सोचता हूँ की 70% जनता के लिए आज भी मुद्दा रोटी, कपडा और मकान ही है।
क्या सचमुच रोटी कपडा और मकान पूरा हो चुका है?
आज कल मैं इंडिया के लोगों को इस पर चर्चा करते नहीं देखता..वरन ..मुझे ऐसा लगता है की भारत अभी भी इन्ही की खोज में है। कई बार तो ऐसा लगता है की हमारी नयी तीन मूल-भूत आवश्यकताएं बिजली,पानी और सड़क ठीक वैसे ही हैं जैसी की योजना आयोग की गरीबी की परिभाषा।
दोनों कोरी परिकल्पना !
चलो....
समय के साथ चलते हैं ...और मान लेते हैं की अब की सबसे बड़ी जरूरत बिजली, पानी और सड़क ही हैं। मेरा मानना है की विगत कुछ वर्षो में तीन में से दो की (बिजली, सड़क) के उत्पार्जन में काफी वृद्धि हुई है ..होना लाजमी भी है।.कई कारण हैं...लम्बे समय से ये ही चुनावी मुद्द हैं ।
हमारी नयी खोज PPP इन्ही से शुरू की गयी थी।
अब सोचने की बात है की लगातार इतने वर्षों तक इन दो पर काम करने पर भी हमारी समस्या का समाधान नहीं हुआ।
क्यों?
कारण क्या है?....उत्पादन कम है?
उत्पादन और बढ़ाया जा सकता है, तो क्या परेशानी ख़तम हो जाएगी?
हाँ, ऐसा India सोचता है , पर भारत नहीं !
क्यूँ?
क्यूंकि, यह तो निर्विवाद है की उत्पादन तो बढ़ा है पर फिर भी छोटे गृह उद्योंगों को बिजली नहीं मिलती
...किसान को बिजली नहीं मिलती ..गाँव को नहीं मिलती, गरीब को नहीं मिलती. अब सोचने की बात है की उत्पादन के बाद भी यह स्थिति क्यूँ?
कारण साफ़ है की बिजली न भारत को मिलती थी, न मिलती है. क्यूँ के उत्पादन से साथ साथ इंडिया की खपत कई गुना तेजी से बढ़ी है ।
पहले इंडिया के पास कुछ पंखे और बल्ब हुआ करते थे, कहीं कहीं टीवी और COOLER भी हुआ करते थे।
अब इंडिया SHINING है, इसके पास कूलेर से आगे जाते हुए पहले A C ... फिर, centralized A C हो गए, टीवी से LED पहुँच गए, हर हाँथ में मोबाइल आ गए।
पास की छोटी बड़ी दुकानों के बजाए बड़े बड़े माल आ गए जिनका मासिक बिजली का बिल औसतन 20-25 लाख रुपये प्रति माह है।
मुंबई के सिर्फ एक व्यापारी परिवार के घर की बिजली का खर्च 74 लाख रुपये प्रति महिना है...
तो अब उत्तर साफ़ है, की बढ़ा हुआ उत्पादन आखिर गया कहाँ?
भारत ने पहले बिजली का नाम सुना था और अब उसके पास बिजली के खंभे हैं ,,हाँ और तार भी ..पर बिजली नहीं है।
पर हां!...प्रगति तो हुई है, इसे नाकारा नहीं जा सकता ...वाकई हुई है!
परन्तु, प्रशन यह उठता है की भारत की प्रगति क्यों हुई है?
इसके पीछे कारण क्या है?
इस प्रश्न का उत्तर बाद में ढूँढ़ते हैं , पहले यह जानना जरूरी है की आठ घंटे के एक A C के बराबर की बिजली में, एक किसान की पानी की मोटर 6 घंटे चल सकती है और गृह उद्योग की Packing मशीन 24 घंटे परन्तु, INDIA को , सरकार को, सरकार चलाने वालों को, सरकार चलाने के लिए टैक्स देने वालों को, तो कम से कम A C चाहिए ही न!
अब क्या करें?... बिजली पानी सड़क तो मूल भूत आवश्यकताएं है।
निर्विवाद रूप से हैं, पर A C तोह मूल नहीं ,,वह भी कम से काम तब ..जब किसान की फसल सूख रही हो, गरीब का बच्चा पढ़ने के लिए सूरज के इंतज़ार में हो और हमारा कामगार (LABOUR ) रात के 3 बजे तक थोड़ी गर्मी कम होने के इंतज़ार में है ताकि कल फिर किसी DIFFICULT CONDITION के WORKPLACE में जा कर CAN CONTRIBUTE TO SHINING INDIA !!
चलो यह जानने की कोशिश करते हैं की आखिर भारत के पास बिजली क और तार पहुंचे क्यूँ ? हमारी सरकार बहुत उदार है, GDP का पूरा ख्याल रखती है। IIP के नंबर नहीं घटने चाहिए इसलिए।
क्या मतलब!
मतलब यह है की जब INDIA हो गया SHINING और SHINING इंडिया के मार्केट में बिकने लगे विदेशी कम्पनी के चिप्स , पेप्सी -कोला , LED , LCD , A C , ...
इस revolution से एक नुक्सान तो यह हुआ की mechanic क्लास ख़तम हो गयी .Use and throw की आदत पड़ गयी ...विलासिता/lavish life हमारा स्वभाव बन गाया ...और व्यक्तित्व नापऩे का पैमाना।
अब Black and White TV , ओल्ड फैशन TV , बहुत सारा सामन इन बिजली के खम्भों के भरोसे बिकने लगे।
भारत भी खुश है इन कभी कभी जलते- बुझते बल्बों के भरोसे ..कभी-कभी टीवी को चलते हुए देखते।
शायद मैं कुछ ज्यादा सोच रहा हूँ।चलो अब समाधान ढूँढते हैं।.
समाधान और आसान समाधान यह है की उत्पादन तो बढ़ाना ही चाहिए पर उससे भी ज्यादा जरूरी है की खपत कम करें। यदि India अपनी खपत कम करे तो भारत बल्ब को जलते हुए देख सके।
यह भी समझ सके की बिजली के तार को छूने पर कर्रेंत भी लगता है और दुरुपयोग करने पर जेब भी कटती है।
उत्पादन बढ़ाना ही समाधान क्यों नहीं?
क्यों की उत्पादन होगा कैसे?
या तो पानी से, कोयले से या फिर nuclear पॉवर से
यदि पानी, कोयले से किया तो यह भी लिमिटेड है। आज नहीं तो कल, इनके लिए भी रोना पड़ेगा।
यदि nuclear से किया तोह उसके Waste को समाप्त करना एक कठिन चुनौती होगी
तो सच्चा समाधान सिर्फ और सिर्फ बचत ही है।
इंडिया को यह सोच बदलनी होगी की मैं अगर बिजली खर्च करता हूँ तो PAY भी तो करता हूँ। यह सामंती सोच है। समाजवादी नहीं।
PLEASE कम से कम इतना तोह करो की घर पर एक ही टीवी में सारे लोग देख लो, बहुत फरक पड़ेगा..personal relationship में भी।
जो Rich से ऊपर हैं, वोह बिजली का प्रयोग घर की चमक के लिए भी करते हैं , सिर्फ अपनी जरूरत के लिए नहीं। पता नहीं और क्या क्या कम करें। कृपया कुछ तो करें!
PLEASE भारत का भी ध्यान करें..आखिर 15% India है 85% भारत है।
पानी इश्वर की तरफ से फिलहाल फ्री है। पर कब तक रहेगा यह इंडिया और भारत को deicde करना है।
पानी की बात फिर कभी।
आज घर पर पीने को पानी है।
हमारी आदत है की बाघों के ख़तम होने के बाद Save Tiger मुहीम चलाते हैं , गाडी में बैठके ..गो ग्रीन कहलाते HAIN ...
इतनी देर से बिजली नहीं आ रही थी ..Thanks to laptop .. कि laptop battery से भी चलता है और thankfully I live between भारत and INDIA (common man ..आम आदमी )
so I can enjoy both , I can feel both.
क्योंकि अब बिजली आ गयी है , बंद करता हूँ ..
हाथी के दांत, खाने के और, दिखाने के और।
चलता हूँ, TV पर बिजली/टाइम/money को waste करता हूँ
Long Live India! जय भारत!
good ! ! !
ReplyDelete