आपने वो एक कहानी तो सुनी ही होगी "बन्दर बाँट" जिसमे दो बिल्लियाँ लड़ रही
होती हैं एक रोटी के लिए और एक बन्दर उनका फैसला करने का भ्रम दे कर
....पूरी रोटी खा जाता है ...और अंत में बिल्लियों को कुछ नहीं मिलता
...याद है ना ...
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ की ....मेरे होश सम्हालने से पहले
....समाज के कुछ वर्ग के साथ ...बहुत बुरा होता था ....उन्हें ...मौके नहीं
देना ...असमानता का व्यवहार करना ..बिलकुल गलत था ...
और आज मैं यह
महसूस भी करता हूँ ...की वो सामाजिक बेडी काफी हद तक कट चुकी है ....और
जहाँ अभी नहीं कटी है ...वहां कट जानी चाहिए ....
मैं सच बोलता हूँ
की मैंने आज तक किसी गरीब दलित को ...अपनी आँख से ...आरक्षण के सहारे आगे
जाते नहीं देखा ...परन्तु ...मध्यम वर्गीय ..या कम गरीब को ...कई बार अपने
से काबिल से आगे के पायदान मैं खड़े पाया .....
मैं हमेशा ये सोंच लेता था की अगर ....थोड़ी और मेहनत कर लें तो .....और बेहतर हो जायेगा ....
पर अब जब पता चल रहा है की ...मेहनत का और ......promotion का सम्बन्ध कम ही होगा ...तो शायद मेरे जैसे काफी लोग दुखी होंगे ...
आरक्षण
दो, परन्तु आर्थिक आधार पर, शहर / गाँव /पिछड़े गाँव ...वातावरण के आधार पर,..... ना की ...जाती या धर्म के आधार पर .....
हाँ जो
लोग पिछड़े हैं ....जिनके पास सुविधाओं की, व्यवस्थाओं की कमी है ....उन्हें
बराबरी की प्रतिस्पधा के लिए जरुरी ...औजार दो, थोड़ी edge भी दो ....न की
एक बैशाखी ....ऐसा करना उनमें से काबिल लोगों के स्वाभिमान को भी मंजूर नहीं होगा ।।
यही तो परेशानी है ...हमारी राजनीती की ...सरकार की
.....की इलाज़ बीमारी का नहीं .....उसके लक्षण का करतें है ....जिससे बीमारी
कभी ठीक नहीं हो सकती ...
यह राजनीतिक इच्छा शक्ति की ...और ....तंत्र
की कमी है की आज 65 साल के बाद भी ...हम सभी को ...इतनी भी सुविधाएँ नहीं
दे पाए की ...वो अपनी मर्जी से पढ़ सके ..और आगे बढ़ सके .....शर्म आती ये
देख कर ...की इस व्यवस्था ..ने हमारे सारे ...सरकारी संस्थानों ..ही ऐसी
हालत कर दी है ...की काबिलियत निखरने के बजाय मर ही जाये .....और धड़ल्ले से
चल रहें है इनके private लूटू संस्थान ...जिसमे सिर्फ पैसे वाला जा सकता
है ...कोई गरीब नहीं चाहे किसी भी जाती का हो ...या धर्म का ....
अपनी कमी
को छुपाने और ...वोट bank बनाने के चक्कर में लगें हैं दिमाग लगाने, की
pramotion में resevation दे की न दें ....ये सब सिर्फ नाटक है ....दोनों
ही सूरत में आम आदमी को सिर्फ बेवकूफ बना रहें है ....
और वैसे भी
...एक वर्ग को आगे लाने ...के लिए दूसरे को पीछे धकेलना ....तो कैसे होगी
...सामाजिक समानता ...जो हम सभी चाहतें है .....और आरक्षण के माध्यम से यही
करना चाहतें है ....
ये तो एक बन्दर बाँट होगा ....जिसमे बिल्ली हमेशा भूखी रहेगी ...और बन्दर रोटी खायेगा ।।
...अपने
उन भाइयों (जो अभी मुझे मनुवादी कहने वाले है) से एक निवेदन ..एक बार सोंच
कर देखो आज से 3/4 पीढ़ी के बाद जब ...general category की हालत अच्छी नहीं
रहेगी ...तब क्या इस बात की भरपाई हो जाएगी जैसा ...आज से 2/3 पीढ़ी पहले
आपके साथ में हुआ ....या अभी भी हो रहा है ....मुझे नहीं लगता ..की आप अपने
पीछे ऐसा इतिहास छोड़ना चाहेंगे ...जो आपको खुद पसंद नहीं है ...
एक
बात है जो बहुत दिन से बताना चाहता था ...और वो यह की गाँव में ...मेरे
साथ में एक लड़का था सोनू मिश्र ......मैं सच बोलता हूँ की कक्षा 12 तक वो
मेरे साथ था मैंने ....कभी मैथ'स और साइंस में उससे अपनी तुलना करने की भी
हिम्मत नहीं जुटाई ....और मेरा परिवार गरीब नहीं था की मैं पढ़ाई न कर सकूँ
..और ईश्वर की दया से जो और जीतनी भी काबिलियत थी ...कर पाया ...आज मैं
किसी आरक्षण या धन की कमी को ...दोष नहीं दे सकता ....इसके लिए सिर्फ अपने
पापा को क्रेडिट देता हूँ ....किसी सरकार को नहीं ...किसी व्यवस्था को नहीं
....
और सच बात तो यह है ...की जब भी मैं सोनू से मिलता हूँ आँख
चुराता हूँ ...मुझे पता है की वो कहीं ज्यादा बेहतर था ...और आज पता नहीं
आरक्षण का दोष कितना ...पर एक बात तो पक्की है ...
की गाँव में बीएससी
(science ) न होने ....और जेब में कम पैसे और बड़े परिवार ...और यह भी
बोलूँगा की पढ़ाई के प्रति जागरूकता ने .....क्यूंकि परिवार ने सिर्फ एक
को ज्यादा पढ़ाने से बेहतर समझा सबको जितना पढ़ा सको ...पढाया जाय सोनू के घर
में उसकी 5 बहने भी 12वीं पास है ...
दुःख होता है ...होली में
गाँव अगर गया ...तो रंग फीके लगते हैं ....एक काबिलियत को मरा हुआ देख कर
....और ऐसा सिर्फ जनरल category के साथ नहीं ...सभी गरीबों के साथ हुआ है
....बिना जाती और धर्म के भेद भाव के ....
और यह भी साफ़ कर दूं की यह सिर्फ मेरी सोंच ही है ....और उम्मीद करता हूँ की AAP की भी कुछ मिलती जुलती होगी .....नागेन्द्र शुक्ल