दोस्तों, घर के सामने की सड़क बन रही थी, बगल की गली से एक लेडी आईं और
उन्होंने ठेकेदार से पूंछा उधर की सड़क नहीं बनेगी क्या ? वो बोला नहीं वो
पास नहीं है
मैंने ठेकेदार से पूंछा की ये सड़क क्योँ बना रहे ये तो ठीक है बस 2/3 गड्डे हैं patch work से ठीक रहेगी अभी 2/3 साल और चल जाएगी, वो बोला ठेका मिला है तो बना रहे है JE से पूंछो
अब पहले की बात होती तो चुपचाप घर आकर सो जाता, पर अरविन्द जी ने दिमाग मैं कीड़ा दाल दिया है
चला गया JE के पास पूंछा - वो भी बोला की कॉर्पोरटर से पूंछो
तभी याद आया "अरे ये तो 2012 है 2014 नहीं - किसी के पास जवाब नहीं होगा"
अब आये थे तो एक और सवाल पूँछ लिया "अगर हर साल सड़क को 1 इंच ऊँचा करोगे तो सीढ़ी चढ़ने के नहीं ....उतरने के लिए बनवानी पड़ेगी, हर बार थोड़ी खरोंच के उसी लेवल पर क्योँ नहीं बनाते
वो बोला technically सड़क 2/3 साल में 1 इंच घिस जाती है तो effectively कोई फर्क नहीं पड़ता
मुझ से निकल गया पर जनाब बस पिछले 6 सालों में मेरे घर की एक सीढ़ी ...ख़त्म कैसे हो गए practically
अब वो झल्ला गया ...बोला lunch time के ठीक बाद क्या टाइम पास कर रहे हो - मुझे नहीं पता
बी क्या था चुपचाप ये सोंचते - सोचते घर चला आया की अगर किसी तरह अरविन्द जी को जीता दें तो इस तरह असहाय महसूस नहीं होगा
स्वराज में खुद बात करके जो बनवानी होगी - वही सड़क बनवा लेंगे एक ठंडी सांस भरी - चलो 2 साल की ही तो बात है ....चलो कोई नहीं ।।
भाइयों, आचा होगा न अगर हम ये कर पाए ....हम तो कोशिश करेंगे ...आप भी करना
भूल गए ...हम कौन .....हम और आप ...आम आदमी
.......नागेन्द्र शुक्ल
मैंने ठेकेदार से पूंछा की ये सड़क क्योँ बना रहे ये तो ठीक है बस 2/3 गड्डे हैं patch work से ठीक रहेगी अभी 2/3 साल और चल जाएगी, वो बोला ठेका मिला है तो बना रहे है JE से पूंछो
अब पहले की बात होती तो चुपचाप घर आकर सो जाता, पर अरविन्द जी ने दिमाग मैं कीड़ा दाल दिया है
चला गया JE के पास पूंछा - वो भी बोला की कॉर्पोरटर से पूंछो
तभी याद आया "अरे ये तो 2012 है 2014 नहीं - किसी के पास जवाब नहीं होगा"
अब आये थे तो एक और सवाल पूँछ लिया "अगर हर साल सड़क को 1 इंच ऊँचा करोगे तो सीढ़ी चढ़ने के नहीं ....उतरने के लिए बनवानी पड़ेगी, हर बार थोड़ी खरोंच के उसी लेवल पर क्योँ नहीं बनाते
वो बोला technically सड़क 2/3 साल में 1 इंच घिस जाती है तो effectively कोई फर्क नहीं पड़ता
मुझ से निकल गया पर जनाब बस पिछले 6 सालों में मेरे घर की एक सीढ़ी ...ख़त्म कैसे हो गए practically
अब वो झल्ला गया ...बोला lunch time के ठीक बाद क्या टाइम पास कर रहे हो - मुझे नहीं पता
बी क्या था चुपचाप ये सोंचते - सोचते घर चला आया की अगर किसी तरह अरविन्द जी को जीता दें तो इस तरह असहाय महसूस नहीं होगा
स्वराज में खुद बात करके जो बनवानी होगी - वही सड़क बनवा लेंगे एक ठंडी सांस भरी - चलो 2 साल की ही तो बात है ....चलो कोई नहीं ।।
भाइयों, आचा होगा न अगर हम ये कर पाए ....हम तो कोशिश करेंगे ...आप भी करना
भूल गए ...हम कौन .....हम और आप ...आम आदमी
.......नागेन्द्र शुक्ल
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