Just reached, a long tiresome day!!!!...But it was Great...
Yes i, donated my weekend to AAP...you missed....next will come...
दोस्त, कल ही तो पता चला था की...दिल्ली की,....
दिल्ली की सडको में इस समय क्रांति चल रही है ...तो आज अपने कई दोस्तों के साथ सोंचा क्यों ना इस बार आम आदमी पार्टी वालो के साथ में काम करके देखा जाए ....
facebook पर तो बहुत पढ़ा ...ऐसा वैसा ....
अब दिल्ली में है ...
अब है तो ,...क्यों खुद ही बाहर निकल पता करे ....देखे ...ये अरविन्द की कोई इज्ज़त विज्जत है की नहीं जमीन पर ....तो बस आ गए ...जमीन पर काम करने देखने ....
और उन दोस्तों के साथ आज मेरा भी रविवार ..."आपके" नाम रहा ...इतनी देर रात घर आ ...थकी ..जोरदार नीद आने से पहले ....ख़ुशी है ...की कुछ किया ....
कुछ किया ...देश के लिए ...समाज के लिए ....अरे ...आपके लिए ....
सच पूंछो ...बहुत मजा आया ...
मेट्रो स्टेशन पर बच्चो की भीड़ ने घेर लिया ....की टोपी दो ....हमने कहा दे तो देंगे ...पर ये ध्यान रहे ...इस टोपी का सम्मान करना ...ये एक विचार धारा है .....कोई लिबाज़ नहीं ....
पता नहीं ...मेरी बात को कितनी तवज्जो देंगे ..ये बच्चे ....
पर ...भूलेंगे भी नहीं ..की ये टोपी ..ऐसे नहीं मिलती ....कुछ करना पड़ता है उसके लिए .....
आज तो निकल गया ....अपना अगला शनिवार - रविवार ....दान करके देखो ....काम करो हमारे साथ ....
घूमो दिल्ली की सड़को ...और जानो इतिहास ....
दिल्ली की गलियों ....कई कच्चे घरो .......पुराने क्रन्तिकारी मिलते ....
सच जमीन पर ...हीरे भी मिलते है ....और कांच भी ....
पर जब मिलते है ..चमक दोनों की बढ़ा ही देती है ..मेहनत ..आपकी ....
जमीन पर ...काम करो ..मजा आ जाएगा ...विस्वास करो ....
और एक बात ....
एक कार रुकी उसमे बैठे दो लोगो ने पूंछा की पैसे कितने मिलते है ....????
अब इन मूर्खो को ये बताना बेवकूफी ही तो थी ...
की हेमंत अमेरिका से नौकरी छोड़ कर आया है ......
और अमित जर्मनी से .....
सोंचने दो ....जो सोंचना है ....हमें तो काम करना है ....देश को बदलना है ...है की नहीं ??????......नागेन्द्र शुक्ल
Yes i, donated my weekend to AAP...you missed....next will come...
दोस्त, कल ही तो पता चला था की...दिल्ली की,....
दिल्ली की सडको में इस समय क्रांति चल रही है ...तो आज अपने कई दोस्तों के साथ सोंचा क्यों ना इस बार आम आदमी पार्टी वालो के साथ में काम करके देखा जाए ....
facebook पर तो बहुत पढ़ा ...ऐसा वैसा ....
अब दिल्ली में है ...
अब है तो ,...क्यों खुद ही बाहर निकल पता करे ....देखे ...ये अरविन्द की कोई इज्ज़त विज्जत है की नहीं जमीन पर ....तो बस आ गए ...जमीन पर काम करने देखने ....
और उन दोस्तों के साथ आज मेरा भी रविवार ..."आपके" नाम रहा ...इतनी देर रात घर आ ...थकी ..जोरदार नीद आने से पहले ....ख़ुशी है ...की कुछ किया ....
कुछ किया ...देश के लिए ...समाज के लिए ....अरे ...आपके लिए ....
सच पूंछो ...बहुत मजा आया ...
मेट्रो स्टेशन पर बच्चो की भीड़ ने घेर लिया ....की टोपी दो ....हमने कहा दे तो देंगे ...पर ये ध्यान रहे ...इस टोपी का सम्मान करना ...ये एक विचार धारा है .....कोई लिबाज़ नहीं ....
पता नहीं ...मेरी बात को कितनी तवज्जो देंगे ..ये बच्चे ....
पर ...भूलेंगे भी नहीं ..की ये टोपी ..ऐसे नहीं मिलती ....कुछ करना पड़ता है उसके लिए .....
आज तो निकल गया ....अपना अगला शनिवार - रविवार ....दान करके देखो ....काम करो हमारे साथ ....
घूमो दिल्ली की सड़को ...और जानो इतिहास ....
दिल्ली की गलियों ....कई कच्चे घरो .......पुराने क्रन्तिकारी मिलते ....
सच जमीन पर ...हीरे भी मिलते है ....और कांच भी ....
पर जब मिलते है ..चमक दोनों की बढ़ा ही देती है ..मेहनत ..आपकी ....
जमीन पर ...काम करो ..मजा आ जाएगा ...विस्वास करो ....
और एक बात ....
एक कार रुकी उसमे बैठे दो लोगो ने पूंछा की पैसे कितने मिलते है ....????
अब इन मूर्खो को ये बताना बेवकूफी ही तो थी ...
की हेमंत अमेरिका से नौकरी छोड़ कर आया है ......
और अमित जर्मनी से .....
सोंचने दो ....जो सोंचना है ....हमें तो काम करना है ....देश को बदलना है ...है की नहीं ??????......नागेन्द्र शुक्ल
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