शबे-बरात को दरअसल,... शब् क़द्र भी कहते है,...मतलब ...."वह शब् जिसकी हमें सबसे ज्यादा कद्र करनी चाहियें",...
शबे-बरात की पाक रात को जहां खुदाई रहमत की रात माना जाता है, इस दिन इंसान की पूरे वर्ष की कारगुजारियों के लिहाज से हिसाब-किताब किया जाता हैं।
पिछले वर्ष के कारनामों से अगली साल की रोजी-रोटी तय होती हैं।
यहां यह गौर करने की बात है कि,...शबे-बरात साफ़ कहता है की ...."आप जैसा करते है वैसा ही भरते है",....
वो कहते है ना .. "मालिक के घर देर है मगर अंधेर नही" क्योंकि प्रत्येक वर्ष,..."आपको आपके किये का सिला मिल जाता है।"
उस मालिक को सब पता है की ..किसके हक में क्या, कब और कैसे देना है बेशक वह अच्छी तरह जानता है,....और करता है ...पर देता ..देता सिर्फ आपके कर्म के अनुसार है .....
शबे-बरात की अहमियत यह भी है कि यह रमजान आने का ऐलान है। अब हमें रमजान की तैयारियों में लग जाना चाहिए। हम सबको मिलकर तालीम पर तवज्जो देनी चाहिए। इसके बिना न दीन दुरुस्त हो सकता है न दुनिया। इबादत करने से इंसान की भीतरी व बाहरी यानी दिल की व जिस्म की सफाई होती है। जिसका दिल पाक होगा वह किसी को नुकसान पहुंचाने की बात भी नहीं सोच सकता। मुसलमान का ईमान मजबूत होगा तो अमल भी पुख्ता होगा। मजहबे-इस्लाम पर चलेंगे तो अल्लाह के नेक बंदे व बेहतरीन इंसान बनेंगे।
कुछ ऐसा त्यौहार है ...शबे-बरात,....पर दुःख ...कुछ लोग ....धर्म या त्यौहार को बिना समझे ही ...धार्मिक दिखने की होड़ में क्या नहीं कर जाते ....
सोमवार की रात को ....दिल्ली की सड़को पर ...जो हुआ,....वो शर्मनाक है ...पर ....
दिल्ली में जो हुआ ...जिसने भी किया ... समझे ...और सोंचे की वो ..जिन्होंने उत्पात किया ....उन्होंने नुक्सान किया किसका ? ...
जिसने किया ...वो मुसलमान नहीं हो सकते ...ये सिर्फ भटके हुए लोग थे .....जो ईश्वर को समझना नहीं चाहते .....या किसी ने गलत समझा दिया ...और शायद ऐसे ही भटके हुए को ...काफिर कहा जाता है ....
काफिरों का कोई धर्म नहीं होता ....ना हिन्दू ...ना मुसलमान ....
पर इन बिगड़े हुए लड़को ने वो किया,.. जैसे इन्हें संस्कार मिले ....पर ऐसे संस्कार ...मिले कैसे? ...दिए किसने?.....
और वो जिसका काम था व्यवथा को बनाना ....मतलब पुलिस ...वो इतनी लाचार क्यों हुई ?....किसने बनाया इसे इतना लाचार?....
सारा दोष ...बिगड़ी व्यवस्था ...और सच को ना समझने ..झूठ में जीने की आदत ...और अपने फायदे के लिए ...जनता का ..धर्म का उपयोग करने की व्यवस्था का ही तो है ......इसे ही तो बदलना है .....नागेन्द्र शुक्ल #DelhiDeservesBest #AAP #Delhi
News Links:-
http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/26-jun-2013-edition-Gurgaon-page_3-21418-6669-244.html
http://navbharattimes.indiatimes.com/other-news-mumbai/Sbe-procession-celebrating-the-simplicity-and-beauty/articleshow/20768353.cms
शबे-बरात की पाक रात को जहां खुदाई रहमत की रात माना जाता है, इस दिन इंसान की पूरे वर्ष की कारगुजारियों के लिहाज से हिसाब-किताब किया जाता हैं।
पिछले वर्ष के कारनामों से अगली साल की रोजी-रोटी तय होती हैं।
यहां यह गौर करने की बात है कि,...शबे-बरात साफ़ कहता है की ...."आप जैसा करते है वैसा ही भरते है",....
वो कहते है ना .. "मालिक के घर देर है मगर अंधेर नही" क्योंकि प्रत्येक वर्ष,..."आपको आपके किये का सिला मिल जाता है।"
उस मालिक को सब पता है की ..किसके हक में क्या, कब और कैसे देना है बेशक वह अच्छी तरह जानता है,....और करता है ...पर देता ..देता सिर्फ आपके कर्म के अनुसार है .....
शबे-बरात की अहमियत यह भी है कि यह रमजान आने का ऐलान है। अब हमें रमजान की तैयारियों में लग जाना चाहिए। हम सबको मिलकर तालीम पर तवज्जो देनी चाहिए। इसके बिना न दीन दुरुस्त हो सकता है न दुनिया। इबादत करने से इंसान की भीतरी व बाहरी यानी दिल की व जिस्म की सफाई होती है। जिसका दिल पाक होगा वह किसी को नुकसान पहुंचाने की बात भी नहीं सोच सकता। मुसलमान का ईमान मजबूत होगा तो अमल भी पुख्ता होगा। मजहबे-इस्लाम पर चलेंगे तो अल्लाह के नेक बंदे व बेहतरीन इंसान बनेंगे।
कुछ ऐसा त्यौहार है ...शबे-बरात,....पर दुःख ...कुछ लोग ....धर्म या त्यौहार को बिना समझे ही ...धार्मिक दिखने की होड़ में क्या नहीं कर जाते ....
सोमवार की रात को ....दिल्ली की सड़को पर ...जो हुआ,....वो शर्मनाक है ...पर ....
दिल्ली में जो हुआ ...जिसने भी किया ... समझे ...और सोंचे की वो ..जिन्होंने उत्पात किया ....उन्होंने नुक्सान किया किसका ? ...
जिसने किया ...वो मुसलमान नहीं हो सकते ...ये सिर्फ भटके हुए लोग थे .....जो ईश्वर को समझना नहीं चाहते .....या किसी ने गलत समझा दिया ...और शायद ऐसे ही भटके हुए को ...काफिर कहा जाता है ....
काफिरों का कोई धर्म नहीं होता ....ना हिन्दू ...ना मुसलमान ....
पर इन बिगड़े हुए लड़को ने वो किया,.. जैसे इन्हें संस्कार मिले ....पर ऐसे संस्कार ...मिले कैसे? ...दिए किसने?.....
और वो जिसका काम था व्यवथा को बनाना ....मतलब पुलिस ...वो इतनी लाचार क्यों हुई ?....किसने बनाया इसे इतना लाचार?....
सारा दोष ...बिगड़ी व्यवस्था ...और सच को ना समझने ..झूठ में जीने की आदत ...और अपने फायदे के लिए ...जनता का ..धर्म का उपयोग करने की व्यवस्था का ही तो है ......इसे ही तो बदलना है .....नागेन्द्र शुक्ल #DelhiDeservesBest #AAP #Delhi
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http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/26-jun-2013-edition-Gurgaon-page_3-21418-6669-244.html
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