चीजो को देखने और दिखाने के कई नज़रिए होते है ......पर दुनिया नज़रिये से नहि चलती .....उसे हकीकत का सामना करना पड़ता है ....और हकीकत ही जानना चाहती है ......और ये नेता जनता को नजरिया दिखा देते है .....पर हकीकत नहीं बताते ....रही बात नज़रिये की .....तो अकसर देखा है ...की समय और काल के हिसाब से नज़रिये बदलते रहतें है .....
अब ग्लास में कितना पानी बचा है .....और कितनी हवा भरी है .....ये सब जनता को दिखे तो सिर्फ तब जब .....ग्लास (व्यवस्था ) ....बेरंग हो ...पारदर्शी हो ...कम कम काला तो ..बिलकुल नहीं होना चाहिए .....
परेशानी तो यही है की ......ग्लास बेरंग नहीं ...पारदर्शी नहीं ......
परेशानी ...सिर्फ इतनी ही नहीं .....वास्तविक परेशानी तो ये है की .....
गिलास को ...आपने बेरंग किया सो अलग ......और एक कदम आगे जाते हुए .....उनमे हवा ...और पानी को ...भी बदरंग ...या यू कहें की भ्रष्ट रंग .....में रंग दिया है ........
अब जनता .....जो सो रही है ....वो तो बस आपके नज़रियों ...और अपने तथ्यों के साथ जी रही है ......
कब वो जानने की ,.........कोशिश करती है ...की गिलास का रंग क्या है ........हवा और पानी .....में कितनी प्राण वायु (ऑक्सीजन ) .......बची है .....
आम आदमी ....तो बस ..लगा है ....अपने हिस्से की ...प्राण वायु (ऑक्सीजन ).....बचाने में .....या यू कहे ....की बस किसी तरह ....गंध में ....रुमाल लगा कर सांस ले रहा है .......और लगा है अपने काम में .....और जी रहा .....इस आस में ...
कोई आये ......जो इस गिलास .....को बेरंग करे .....
कोई आये ...जो मरती व्यवस्था ......को प्राणवायु दे .......
कोई आये ....जो एक ईमानदार ...सांस दे ........
कोई आये .....कोई आये .....अरे क्यों आये ?......क्यों आये भाई ?.......
अरे आप स्वयं अपनी जिम्मेवारी समझो .....और जहां हो जैसे हो ......बस करो गिलास को बेरंग .....करो साफ़ .....ये पानी ...ये हवा .......नागेन्द्र शुक्ल
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
अब ग्लास में कितना पानी बचा है .....और कितनी हवा भरी है .....ये सब जनता को दिखे तो सिर्फ तब जब .....ग्लास (व्यवस्था ) ....बेरंग हो ...पारदर्शी हो ...कम कम काला तो ..बिलकुल नहीं होना चाहिए .....
परेशानी तो यही है की ......ग्लास बेरंग नहीं ...पारदर्शी नहीं ......
परेशानी ...सिर्फ इतनी ही नहीं .....वास्तविक परेशानी तो ये है की .....
गिलास को ...आपने बेरंग किया सो अलग ......और एक कदम आगे जाते हुए .....उनमे हवा ...और पानी को ...भी बदरंग ...या यू कहें की भ्रष्ट रंग .....में रंग दिया है ........
अब जनता .....जो सो रही है ....वो तो बस आपके नज़रियों ...और अपने तथ्यों के साथ जी रही है ......
कब वो जानने की ,.........कोशिश करती है ...की गिलास का रंग क्या है ........हवा और पानी .....में कितनी प्राण वायु (ऑक्सीजन ) .......बची है .....
आम आदमी ....तो बस ..लगा है ....अपने हिस्से की ...प्राण वायु (ऑक्सीजन ).....बचाने में .....या यू कहे ....की बस किसी तरह ....गंध में ....रुमाल लगा कर सांस ले रहा है .......और लगा है अपने काम में .....और जी रहा .....इस आस में ...
कोई आये ......जो इस गिलास .....को बेरंग करे .....
कोई आये ...जो मरती व्यवस्था ......को प्राणवायु दे .......
कोई आये ....जो एक ईमानदार ...सांस दे ........
कोई आये .....कोई आये .....अरे क्यों आये ?......क्यों आये भाई ?.......
अरे आप स्वयं अपनी जिम्मेवारी समझो .....और जहां हो जैसे हो ......बस करो गिलास को बेरंग .....करो साफ़ .....ये पानी ...ये हवा .......नागेन्द्र शुक्ल
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
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