Thursday, March 26, 2015

YY ka दोगला व्यवहार है ,....

देखो अब मैं कुछ लिखूँगा तो तुम मुझे अरविन्द का चमचा आदि इत्यादि बोलकर UnitedAAP के नाम पर चुप कराने की बात करोगे ,....
इसलिए सब नहीं ,....सिर्फ इतना बता दें ,....
की वो जो एक तरफ UnitedAAP की रट लगाये है ,....
दूसरी तरफ नवीन जयहिंद मुक्त हरियाणा की माँग कर जी पर अड़े है ,.... वही हरियाणा में नवीन के खिलाफ हस्तांक्षर अभियान चला रहे है ,....
खैर ,…बता दें की ,…
आज YY गैंग (हाँ गैंग बोल रहा हूँ क्योंकि पार्टी बनने के बाद से आज तक YY ने पार्टी के अंदर सिर्फ और सिर्फ अपनी गैंग बनाने का ही काम किया है ),....
तो आज YY गैंग की एक गुपचुप मीटिंग हुई ,…
उस मीटिंग में 28 तारीख को ,.... जिस जगह NAC की मीटिंग होनी है उसके सामने UnitedAAP की रट लगाने वालो की भीड़ इकठ्ठा करने के लिए जी जान लगाने ,…
और नवीन को हरियाणा से ,… बाहर निकालने के पत्र पर अधिकाधिक हस्तांक्षर कराने का आदेश दिया गया ,…
28 को भीड़ लाने वाले के लिए किराये तक पर आदमी लाने की तैयारी है ,…

वैसे मेरी जानकारी के अनुसार ,…
YY की अब तक की सारी मांगो को एक एक करके माना जा चुका है ,… पर उनकी माँगे और मनसा अजीब है ,…
कहते है रिक्त स्थान भरो ,… और उनमे कौन होगा ये वो बताएँगे ,....
UnitedAAP चिल्लायेंगे पर नवीन मुक्त चाहेंगे ,....
कैसा दोगला व्यवहार है ,....
खैर ,…
मैं साक्षी हूँ ,…
YY ने पहले पदो का लालच दे - आंदोलन और अरविन्द के करीबी साथियो को ,… अपनी गैंग में शामिल किया ,…
जो लालच से शामिल नहीं हुआ ,… उनको इतनी जिल्लत दी की छोड़ने पर मजबूर हुआ ,…
जिसने जिल्लत के बाद भी नहीं छोड़ी ,.... उसे इसका उसका एजेंट बता ,.... पार्टी से निकाला ,…
मैं साल भर [पहले से कह रहा हूँ ,....
मुझे योगेन्द्र जी की नियत हमेशा से एक दिखी ,.... और वो ,… की कैसे अरविन्द का खात्मा हो ,....
और कैसे वो और उनके गुर्गे ,.... पार्टी पर कब्ज़ा करें ,....
योगेन्द्र जी ,....आपकी धूर्तता का प्रत्यक्ष साक्षी हूँ मैं ,....
और मुझे उन दिनों का दुःख है ,.... जब मैं आपको अपना ,....आदर्श मानता था ,.... ‪#‎NagShukl‬

YY volunteers की बात करते है - पर हमें आपको वालंटियर नहीं मानते - वो सिर्फ उनको वालंटियर मानते हैजिनको उन्होंने पद का वादा किया है ,…

Wednesday, February 18, 2015

AAP Govt effect

चुनाव से पहले मोदी जी ने अपने एक भाषण पर ,…
आवाम के उस 2 करोड़ के चंदे के आधार पर ,…
कुछ ऐसा बोला था ,…
"काली रात - घोर काली रात - और काली रात के काले कारनामे ,...."
क्या हुआ साहेब ,.... ??
वित्त मंत्री अरुण जेठली ने कहा था "रंगे हाँथ पकड़े गए"
निर्मल सीतारमण ने कहा था "चोर",....

आज केंद्र सरकार ने - क्लीन चिट क्यों दे दी ? उन काले कारनामो को ???
वाकई BJP मतलब - भारतीय जुमला पार्टी ,....


दिल्ली में आम आदमी पार्टी की नई सरकार का इफेक्ट दिखने लगा है।
पुलिस वाले को जूस वाले से मांगनी पड़ी माफी
http://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/other-news/policeman-had-to-apologize-to-juice-sellers/articleshow/46284897.cms
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सब्सिडी के 300 करोड़ कहाँ से आयेंगे??
Excise officials among 9 held for liquor smuggling
ये लो 2500 करोड़ का तो घपला पकड़ भी लिया अरविन्द ने। एक्साइज अफसर शराब माफिया के साथ मिलकर हर साल दिल्ली सरकार को 2500 करोड़ का चूना लगाता था।
गरीब के हिस्से का 8 साल का पानी शराब माफिया ले जाता था हर साल
http://m.timesofindia.com/city/delhi/Excise-officials-among-9-held-for-liquor-smuggling/articleshow/46268750.cms
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एक्शन में केजरीवाल: ठेके वालों की नौकरी नहीं जाएगी

http://abpnews.abplive.in/ind/2015/02/17/article504629.ece/arvind-kejriwal-in-action

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मोदी की नीतियां देश के लिए ठीक नहींः गोविंदाचार्य

http://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/politics/modi-policies-are-not-good-for-the-country-govindacharya/articleshow/46253362.cms
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 नियत का असर वो होता है की ,.... काम आँखों से चलता है - जुबान हिलाने की जरुरत नहीं ,....
इधर अरविन्द ने शपथ ली ,.... उधर RTO से दलाल गायब ,…
द्वारका से पानी की पम्पिंग शुरू, 2 पम्प चालू ,....
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नहीं हटेगी रेहड़ी , बंद होगी 600 करोड़ की रिश्वतखोरी

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दिल्‍ली चुनावों पर भाजपा ने खर्च किए 400 करोड़ रुपए! और AAP का कुल चंदा था 30 करोड़ 

http://www.amarujala.com/feature/samachar/national/bjp-spend-400-crore-rupee-on-delhi-election-hindi-news-sy/

अरविन्द का सन्देश

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Effect : Free Water tankers, Clean Roads

 

Sunday, January 18, 2015

BJP नेता किरण बेदी के नाम एक खुला खत........

बीजेपी में शामिल होने के बाद अमित शाह के साथ किरण बेदी
देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी अब भाजपाई हो गई हैं. कैमरों के दुर्लभ फोकस का लुत्फ लेते हुए वह बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बगल में बैठी हैं . दिल्ली को नंबर एक राजधानी बनाने का सपना दिखाते हुए वह राजनीतिक तौर पर कहीं ज्यादा ताकतवर लग रही हैं. उनकी बातें वैसी ही हैं जैसी किसी पार्टी के संभावित सीएम कैंडिडेट की हो सकती हैं. यह देखते हुए और इस पर सोचते हुए मुझे चार साल पुराना एक दृश्य याद आता है. रामलीला मैदान का मंच है. मंच के एक छोर पर खड़ा एक शख्स, जिसका नाम कुमार विश्वास है, माइक थामे हुए एक गीत गा रहा है- 'होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो'. दूसरे छोर से किरण बेदी एक बड़ा सा तिरंगा दोनों हाथों में थामे हुए फहराने लगती हैं. शारीरिक रूप से कमजोर और राजनीतिक तौर पर बलवान हो चुका एक बुजुर्ग, जिसका नाम अन्ना हजारे है, अनशन पर बैठा है. अरविंद केजरीवाल नाम का एक आरटीआई कार्यकर्ता भी उसके साथ है.

यह पूरा दृश्य उस सपने को आपके भीतर स्थापित करने के लिए काफी है, जो अरविंद, अन्ना, कुमार, किरण और यहां मौजूद हजारों लोग देख रहे हैं; कि कुछ तो बदलेगा. बदलेंगे ये लोग, बदलेंगे हम लोग, जो सिर पर कफन बांधकर निकले हैं.
अन्ना के आंदोलन से क्या मिला!
और अब एक ताजा दृश्य. कहानी थोड़ी फिल्मी है. केंद्र में बीजेपी की सरकार है. रालेगण सिद्धि में तनहा बैठे हुए अन्ना अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता का कत्ल होते देख रहे हैं. उनके सहयोगियों की आखिरी किस्त भी उनसे विदा ले चुकी है. आंदोलन से जुड़ी एक पूर्व महिला पत्रकार अपने पुराने सहयोगियों को 'एक्सपोज' करने पर आमादा हैं. 'देशसेवा' के जज्बे से लैस देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बीजेपी में शामिल हो गई है. इसका श्रेय उन्होंने मई में मिली एक चमत्कारिक प्रेरणा को दिया है. अटकलें हैं कि 'विजय रथ' पर सवार बीजेपी उन्हें देश की राजधानी में होने वाले चुनाव का अघोषित रूप से सबसे बड़ा चेहरा बनाने वाली है. अन्ना के मंच के आगे सेल्फी लेने और आइसक्रीम खाने वाले प्रेमी जोड़ों में से कुछ नाकाम, तो कुछ कामयाब हो गए हैं. लेकिन अन्ना का आंदोलन 15 जनवरी 2015 को एक और बार, दुर्गति को प्राप्त हो गया है.
चार साल में उस सपने के चार टुकड़े हो गए हैं. कोई इसे परंपरागत राजनीति की जीत के प्रतीक के तौर पर भी देख सकता है. हालांकि अरविंद अपनी गलतियों, खामियों और पुराने साथियों के साथ अपने जीवन की संभवत: सबसे अहम लड़ाई लड़ रहा है.
पलटने की ये अदा भी क्या खूब रही!
आदरणीय किरण बेदी जी, यह फ्लैशबैक की तस्वीर इसलिए पेश की, ताकि आपको सनद रहे कि हम स्मृति-लोप, बोले तो अल्झाइमर के शिकार नहीं हैं. क्या करें, जमाना स्क्रीनशॉट का है, कुछ भूलने नहीं देता. दिक्कत इससे नहीं है कि आप बीजेपी में चली गईं. दिक्कत इससे है कि आप कांग्रेस-बीजेपी के खिलाफ लड़ते-लड़ते बीजेपी में चली गईं. यह हार मान लेने का प्रतीक है. यह इस बात का प्रतीक है कि अब तक आपने जो किया, वह गलत था और पारंपरिक रास्ता ही सही रास्ता है. बताने वाले बताते हैं कि बीते जमाने जब मजदूर यूनियनें हड़ताल करती थीं तो यूनियन के नेता को मालिक मैनेजर बना लेते थे. मजदूरों की क्या बिसात जो उस मालिक से सवाल करे जो देश पर राज कर रहा हो. पर यूनियन की पुरानी नेता से कुछ सवाल जरूर हैं हमारे.
1. याद करिए वह ट्वीट जिसमें आपने लिखा था कि कांग्रेस और बीजेपी राजनीतिक फंडिंग को आरटीआई के दायरे में नहीं लाना चाहतीं तो यह शर्म की बात है और आपका वोट इनमें से किसी पार्टी को नहीं जाएगा. आज आप उसी पार्टी में हैं. क्या वहां आप बीजेपी अध्यक्ष से पार्टी की फंडिंग का हिसाब मांगेंगी?

2. आप ही हैं जिन्होंने गुजरात दंगों के मामले में क्लीन चिट मिलने के बावजूद नरेंद्र मोदी की ओर से सफाई दिए जाने की जरूरत बताई थी. क्या अब 'सफाई' की वह जरूरत अब भी बची हुई है या स्वच्छता अभियान के झोंके में कहीं बह गई है?

3. क्या राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर आपकी जो पुरानी समझदारी थी, उससे आपका मोह भंग हो गया है? क्या इसे आपके राजनीतिक हृदय परिवर्तन के रूप में देखा जाए? अब तक बीजेपी के खिलाफ कही गई अपनी ही बातों से अब असहमत हो गई हैं?

4. क्या महिला सशक्तिकरण के अपने अभियान को आप बीजेपी में भी कायम रखेंगी? रेप और दंगों के मामलों में नामजद मंत्रियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराएंगी? खाकी वर्दी पहनी है आपने, साक्षियों और साध्वियों की बदजुबानी को डिफेंड तो नहीं करेंगी ना?
5. आप ही थीं जिसने आम आदमी पार्टी से अलग होने के बाद 'अपॉलिटिकल' यानी 'गैर-राजनीतिक' बने रहने की इच्छा जताई थी. किसी दल में जाने की खबरों को आप खारिज करती रहीं. लेकिन बीजेपी के सीएम उम्मीदवार की कुर्सी खाली दिखी तो अपने सिद्धांतों से ही मुंह मोड़ लिया. आप निजी फायदे के लिए नहीं, देशसेवा के लिए बीजेपी में गई हैं, यह मानने का हमारे पास क्या कारण है? नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ना एक तरह का संघर्ष है. इसमें बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ता है. लेकिन लगातार जीत रही एक स्थापित पार्टी में जाने के मायने दूसरे हैं. यह एक 'प्रिविलेज' है, यहां आपको अपने लिए कहीं ज्यादा मिल सकता है. ऐसे में हम आपको अवसरवादी और स्वार्थी क्यों न मानें?

6. अब शक होता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आप आंदोलन के समय से ही घोर राजनीतिक रही हों? कहीं ऐसा तो नहीं कि अन्ना के मंच पर बैठते और बोलते वक्त भी आपके दिल के तार बीजेपी से जुड़े हुए थे?
7. बीजेपी भी उसी राजनीतिक व्यवस्था का अंग है जिसके खिलाफ अन्ना का आंदोलन हुआ था. फिर बीजेपी में ही जाना था, तो कांग्रेस क्या बुरी थी? या उससे इस बात की तल्खी थी कि उसने तमाम योग्यताओं के बावजूद आपको कमिश्नर नहीं बनाया?

8. मुख्यमंत्री ही बनना था तो 2013 में आम आदमी पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव क्यों नहीं स्वीकार किया? या संभव है आपको AAP की सरकार बनने का कोई अंदेशा न रहा हो.

किरण जी, स्कूल में पढ़ते थे तो आपका नाम जीके की किताब में भी आता था. देश की पहली महिला आईपीएस. एक ईमानदार और तेज-तर्रार पुलिस अधिकारी. बॉय कट बाल. बोलती थी तो लगता था कि डांट देंगी तो बड़े-बड़े शोहदे पैंट गीली कर देंगे. इस छवि के प्रति मन में एक सम्मान था आपके लिए. बहुत सारे नौजवान आपके दिए भरोसे की बदौलत इस मुश्किल रास्ते पर आए थे. जब वे बहुत आगे बढ़ चुके हैं और एक अहम लड़ाई के मुहाने पर हैं, तभी आप हाथ छुड़ाकर शॉर्टकट की ओर भाग गई हैं. इसलिए फिर दोहराता हूं, आपके बीजेपी में जाने से समस्या नहीं है, लेकिन कांग्रेस-बीजेपी के खिलाफ लड़ते-लड़ते बीजेपी में जाने से है.
आपका यह राजनीतिक अवसरवाद एक आंदोलन से पैदा हुए समूचे आशावाद को ध्वस्त करता है. अन्ना हजारे की पीठ में छुरा किसने घोंपा, ये किसी से छिपा नहीं है. आपको आपकी नई राजनीतिक पहचान और ताकत मुबारक हो. रामविलास पासवान को उनके जैसी नई संगत मुबारक हो. आपको आपके अच्छे दिन मुबारक हों. लेकिन जब टीवी पर आपका यह परिचय देखेंगे कि  'किरण बेदी, बीजेपी नेता' तो कुछ दिन तो अजीब लगेगा, मैडम.

Friday, January 9, 2015

शरद शर्मा की खरी-खरी : 'बी' टीम की राजनीति

नई दिल्ली: दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की तरफ से जैसे ही संकेतभरा बयान आया कि चुनाव के बाद अगर किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस आम आदमी पार्टी को समर्थन दे सकती है, दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का बयान आया कि ''आप कांग्रेस की बी टीम है'' और दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष ने भी बोला कि ''आप बीजेपी की बी टीम है।''

अचानक मेरे मन में आया कि ये 'बी टीम' वाले बयान मैंने साल 2013 के दौरान खूब सुने जब आम आदमी पार्टी नई-नई बनी थी और प्रचार शुरू ही किया था। इस पार्टी को कवर करते हुए मैंने कोशिश की यह जानने की कि क्या वाकई ये पार्टी कांग्रेस या बीजेपी की बी टीम है

पार्टी के बारे में अपनी राय बताने से पहले मैं बताना चाहूंगा कि मैं जब साल 2011 में जंतर-मंतर और रामलीला मैदान का टीम अन्ना का आंदोलन कवर कर रहा था तब मुझे इस बात का शक होता था कि इस आंदोलन के पीछे संघ या बीजेपी सपोर्ट हो सकता है। इसके कुछ कारण थे, जैसे कि आंदोलन पूरी तरह से कांग्रेस के विरुद्ध था और दूसरा बीजेपी नेताओं का टीम अन्ना के लिए समर्थन और आदर। या फिर टीम अन्ना के कुछ सदस्यों की बीजेपी नेताओं से करीबियां। हालांकि ये कारण बहुत स्वाभाविक थे और काफी नहीं थे ये साबित करने या मान लेने के लिए कि यह सब बीजेपी या संघ के समर्थन पर हो रहा है, हालांकि इस बात में कोई शक नहीं कि टीम अन्ना का आंदोलन कामयाब बनाने में संघ से जुड़े लोगों की भी भूमिका थी, लेकिन शायद एक नागरिक के तौर पर या फिर इसलिए क्योंकि सब कांग्रेस विरोधी था इसलिए।

लेकिन समय के साथ जैसे ही आंदोलन पार्टी में बदला लगने लगा कि ये बीजेपी नहीं, बल्कि कांग्रेस को फायदा पहुंचाता दिखा, क्योंकि माना ये गया कि जैसे दिल्ली में चुनाव होने की स्थिति में कांग्रेस सरकार के खिलाफ पड़ने वाला वोट बंट जाएगा और बीजेपी फिर सत्ता से बाहर और कांग्रेस फिर जैसे तैसे सरकार बना लेगी

लेकिन फिर वो हुआ, जो किसी ने सोचा ना था.....अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली की 15 साल पुरानी कद्दावर सीएम शीला दीक्षित से लड़ने नई दिल्ली में घुस गए। मैंने उस समय कहा था कि नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित को हराने का मतलब है शेर के जबड़े से शिकार निकाल लाना। मेरे मन में सवाल आया कि अगर केजरीवाल कांग्रेस की मदद करने के लिए पार्टी बनाते तो कम से कम खुद को शीला दीक्षित की सीट से उम्मीदवार घोषित ना करते, क्योंकि कोई किसी पार्टी की मदद करने में खुद को कुर्बान क्यों करेगा?

मेरे मन में वैसे यह सवाल समय-समय पर उठते रहे कि अगर 'आप' को वोट देने पर वोट बंटे और कांग्रेस फिर सरकार में आ गई तो लोग आम आदमी पार्टी को कांग्रेस की बी टीम मान ही लेंगे जबकि मुझे ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जो A B C D टीम होने के सबूत दे।

8 दिसंबर 2013 को वह साबित हुआ, जो मेरा अनुभव आम आदमी पार्टी के बारे में था। कांग्रेस को निपटाने वाली पार्टी आम आदमी पार्टी बनी, अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को करारी शिकस्त दी और कांग्रेस के सभी बड़े मंत्री और नाम 'आप' के उम्मीदवारों से या 'आप' की वजह से चुनाव हार गए। जिस पार्टी की बी टीम होने का आरोप लगा, आम आदमी पार्टी ने उस पार्टी को निपटा दिया।

यही नहीं मेरा मानना है कि चुनाव के बिना भी देश में कांग्रेस के खिलाफ़ माहौल असल में अरविंद केजरीवाल ने तैयार किया, जिसका फायदा बीजेपी को मिला। अन्ना के आंदोलन ने देश में कांग्रेस के खिलाफ़ वह माहौल बना दिया, जो बीजेपी नहीं बना पाई थी। 2004 से अन्ना के आंदोलन का चेहरा केवल अन्ना हज़ारे थे, लेकिन सारा दिमाग और रणनीति अरविंद केजरीवाल की।

लोकसभा चुनाव में दिल्ली में सभी सीटों पर बीजेपी पहले और 'आप' दूसरे नंबर पर रही और आज दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है तब भी उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से है। दोनों पार्टियों में रिश्ते इतने खराब हैं कि शायद कांग्रेस और बीजेपी के बीच भी कभी ऐसे रिश्ते नहीं रहे होंगे जबकि दोनो परंपरागत विरोधी हैं।

लोकसभा चुनाव के दौरान मार्च 2014 में बीजेपी मुख्यालय के बाहर हुई ज़ोर-आज़माइश हो या हाल ही में दिल्ली के तुगलकाबाद में एक टीवी डिबेट के दौरान हुई हिंसा, जिसमें मारपीट के बाद आप उम्मीदवार की गाड़ी स्वाहा हो गई.....ये सारी घटनाएं बताती हैं कि दोनों पार्टियों में आपस में कितनी कटुता है

अब सोचकर देखिए कि कांग्रेस को निपटाकर बीजेपी की दुश्मन नंबर वन बनी पार्टी क्या इनमें से किसी की बी टीम हो सकती है?
या फिर ये पहले से स्थापित पार्टियों का रेगुलर या रट्टू बयान मात्र है?

या फिर यह एक व्यवस्था की समस्या है, जिसमें किसी भी नए खिलाड़ी या नए विचार या बदलाव का विरोध केवल विरोध करने के लिए होता है, जिससे जैसा निज़ाम चल रहा है, चलता रहे क्योंकि विरोध करने वाले लोग पहले से मौजूद व्यवस्था के लाभार्थी हैं?

अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी बनाई है और अपनी राजनीति कर रहे हैं। अपनी राजनीति के चलते वह पहली ही बार में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, अपनी राजनीति के चलते ही इस्तीफ़ा देने पर वो लोकसभा चुनावों में उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाए...अपनी राजनीति के चलते ही वो आज भी दिल्ली की जनता को अपने इस्तीफे के वजह समझाकर कह रहे हैं कि अबकी बार मौका दो तो 5 साल तक इस्तीफ़ा नहीं दूंगा.....अब ये तो जनता तय करेगी ना कि मौका देने लायक वो हैं या नहीं।

विरोधी पार्टियां केजरीवाल की पार्टी, उम्मीदवार, काम करने के तरीके पर ज़रूर सवाल उठाएं इसमें कोई हर्ज़ नहीं क्योंकि केजरीवाल भी यहीं करते है और राजनीति में यही तो होता है, लेकिन ये बी टीम वाला टेप इतना घिस चुका है कि आगे चल नहीं पाएगा। कुछ नया सोचिए जनाब कब तक पब्लिक और मीडिया एक ही लाइन सुनेंगे, लेकिन हां, मैं इतना ज़रूर कहता कि अगर कहीं कभी कोई ऐसा लिंक मुझे मिलेगा....तो इस पर सबसे पहले स्टोरी करूंगा।
http://khabar.ndtv.com/news/blogs/sharad-sharma-on-b-team-politices-724715

Thursday, November 20, 2014

मोदी—अडाणी पर कुछ तथ्य बनाम अच्छे दिन

मोदी—अडाणी पर कुछ तथ्य बनाम अच्छे दिन
1: पूरा देश जानता है कि गौतम अडानी ने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रचार के लिए फंडिंग की थी. प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए नरेंद्र मोदी अडाणी के हेलीकॉप्टर में सवार होकर गुजरात से दिल्ली आए थे. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही अडाणी साये की तरह उनके साथ फिर रहे हैं. अडानी के कारोबार का टर्न ओवर 2002 के 76.50 करोड़ डॉलर से बढ़कर फिलहाल 10 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. संयोग से यह दौर नरेंद्र मोदी के सत्ता में लगातार मजबूत होते जाने का है.
प्रधानमंत्री के विदेश दौरे के दौरान सरकारी उपक्रम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अडानी ग्रुप को 6000 करोड़ रुपए का लोन देना मंजूर किया है। ऑस्ट्रे लिया के वेस्टरर्न क्वीं सलैंड स्थित क्लेेरमोंट के करीब कारमाइकल में अडाणी माइनिंग प्रोजेक्टर है, जिसके लिए यह पैसा दिया गया. देश की जनता का पैसा एक ऐसे उद्योगपति को राहत देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जिसने सत्ताधारी पार्टी को चुनावों में मदद की. अडाणी के पास पहले से करीब 65 हजार करोड़ रुपए की देनदारी है। उधर, बैंकों की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि कंपनियों को दिया गया कर्ज वसूलना मुश्किल हो रहा है।
एसबीआई ने इस ऋण समझौते को लेकर किसी प्रकार का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। अडाणी और एसबीआई के बीच यह समझौता बेहद गोपनीय तरीके से किया गया, जबकि कई बड़े वैश्विक बैंकों ने पर्यावरण कारणों के मद्देनजर इस उद्यम को लेकर सवाल उठाए थे, साथ ही क्रेडिट लिमिट बढ़ाने से भी इनकार कर दिया था। एसबीआई ने अडानी को ऐसे उद्यम के लिए ऋण देने का निर्णय लिया है, जिसका भविष्य क्या होगा, किसी को नहीं मालूम.
यह भी याद करना चाहिए कि 2002 में दंगों के बाद व्यापार जगत की संस्था कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज़ (सीआईआई) से जुड़े उद्योगपतियों ने हालात पर काबू पाने में ढिलाई बरतने के लिए मोदी की आलोचना की थी. तब अडाणी ने उद्योगपतियों को मोदी के पक्ष में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने सीआईआई के समांतर एक और संस्था खड़ी करने की चेतावनी भी दी थी.
नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार पर आरोप लगा था कि उन्होंने अडानी समूह को भारत के सबसे बड़े बंदरगाह मुंदड़ा के लिए बड़े पैमाने पर कौड़ियों के भाव ज़मीन दी है. बीती मई में सरकारी अधिकारियों ने बिजली बनाने के काम में आने वाले उपकरणों के आयात की क़ीमत को कथित तौर पर क़रीब एक अरब डॉलर बढ़ाकर दिखाने के लिए नोटिस जारी किया था. फरवरी, 2010 में अडानी ग्रुप के प्रंबंध निदेशक और गौतम अडानी के भाई राजेश अडानी को कथित तौर पर कस्टम ड्यूटी चोरी के मामले में गिरफ़्तार भी किया गया था.
क्या इन सब बातों को एकदम सामान्य समझा जाना चाहिए? क्या अडाणी और मोदी की यह नजदीकी अडाणी का विकास कोई सामान्य घटना है? क्या उनका विकास क्रोनी कैपिटलिज़्म का नतीजा है? यदि मोदी से फायदा खाकर अडाणी का साम्राज्य बढ़ने में कुछ गलत नहीं है तो यूपीए सरकार के दौर में भी तो सत्ता और पूंजीपतियों का ऐसा ही गंठजोड़ हुआ था, जिसके बाद लाखों करोड़ लूट सामने आई थी.
2: अडानी के पास पहले से करीब 65 हजार करोड़ रुपए की देनदारी है। इसके बावजूद एसबीआई ने उन्हें 6000 करोड़ रुपए का लोन देना मंजूर किया है। वह भी तब जब बैंक लगातार यह बता रहे हैं कि कंपनियों को दिया गया कर्ज वसूलना मुश्किल हो रहा है। ढेर सारी इन्फ्रास्ट्र क्चयर कंपनियां बैंकों से लोन रीस्ट्रिक्च र करवाने की अर्जियां डाल रही हैं।
ऑस्ट्रे्लिया के वेस्टचर्न क्वींंसलैंड स्थित क्ले रमोंट के करीब कारमाइकल में अडानी माइनिंग का प्रोजेक्टट है। इस प्रोजेक्ट् के लिए गौतम अडानी के अडानी समूह और एसबीआई के बीच 6000 करोड़ रुपए का लोन सैंक्श्न करने से संबंधित सहमति पत्र पर दस्तमखत हुए हैं।
अडानी इंटरप्राइजेज की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी के पास 49,584 करोड़ का दीर्घकालिक (यानी जिसे लंबे समय तक चुकाया जा सकता है) कर्ज है। 15,394 करोड़ का कर्ज ऐसा है जिसे कम वक्त में ही चुकाना है। यह स्थिति 31 मार्च, 2014 की है। कंपनी ने 218 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया है और इस सितंबर में खत्मर हुई तिमाही के दौरान कंपनी ने अपना टर्नओवर 3328 करोड़ रुपए बताया है। (स्रोत: दैनिक भास्कर)
पत्रकार कृष्णा कान्त की वाल से साभार
http://firstbiz.firstpost.com/corporate/pressure-cong-aap-sbi-defends-rs-6200-cr-loan-adani-109348.html

Tuesday, November 18, 2014

जय जवान - जय किसान

जय जवान - जय किसान
ये नारा दिया था हमारे सबसे लोकप्रिय और अपनी सादगी और संवेदना के कारण लोगो के दिली में रहने वाले प्रधानमन्त्री स्व. श्री शास्त्री जी ने.
शास्त्री जी ने समझा देश की अखंडता और विकास के लिए जवानो की बन्दूक में गोली और किसान के पेट में रोटी तन में लंगोटी बहुत जरुरी है ,… शायद इसीलिए उन्होंने कहा "जय जवान - जय किसान",....

उनके बाद के समय में ,…जो थोड़ी बहुत सुविधाये मिली वो हमारे सैनिको को मिली ,…पर देश के अन्नदाता के हालात धीरे धीरे - बद से बदतर होते चले गए और आज उस स्थिति में है की छोटा किसान "ना जीता है ना मरता है - बस यूँ ही किसानो के दुर्भाग्य और अनदेखी से लड़ता रहता है",....

तो हमारा सुझाव ये है की,....जैसे जवानो को टैक्स फ्री सामान के लिए CSD कैंटीन है हमारे किसानो (छोटे) के लिए कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए

प्रस्ताव है की,…
दिल्ली में जब #AAP की सरकार बने तो, तो हम किसानो को किसी ना किसी तरह इस तरह की सुविधा दें,
सरकार के पास साधन सीमित है
इस पर दिल्ली सरकार पर बहुत ज्यादा बोझ आने की उम्मीद इसलिए नहीं दिखती की ,....दिल्ली में किसानो(छोटे) की संख्या काफी कम होगी।
फायदा
दिल्ली में किसानो की संख्या कम है - पर दिल्ली में #AAP का ये विचार, पूरे देश के सामने एक प्रश्न रखेगा की ,.... हमारे देश में छोटे किसानो के लिए कोई गंभीर क्यों नहीं रहा ,.... दिल्ली में आप की ये घोषणा - जन्म देगी एक नयी और सार्थक बहस को ,.... की "किसानो के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए अथवा नहीं",
इस बहस का फायदा "आप" को दो तरह से मिलेगा
1. दिल्ली चुनाव में टीवी की बहसों में AAP अपना सार्थक पहलू रखेगी और कोई भी पार्टी इसका खुला विरोध नहीं कर पाएगी (दिल्ली में तो लागू करने का खर्च भी कम होगा)
2. इस मांग और मुद्दे से देश की बांकी सरकारे और राजनीतिक दल भी मजबूर होंगे इस दिशा में सोंचने के लिए ,…तो अंतया किसानो को फायदा होगा ,.... और ये आप का ऐसा मुद्दा होगा जिसका विरोध कोई दल, धर्म, जाति या भाषा वाला नहीं कर पायेगा

छोटे किसान से की मतलब ?
वो किसान जिसके पास 5 एकड़ से कम जमीन है उसे इस श्रेणी में रख सकते है

छोटे किसान को पहचाना कैसे जाएगा ?
सरकार के पास सारा रिकॉर्ड होता है दिल्ली में तो शायद ऑनलाइन हो

पर CSD कैंटीन जैसी व्यवस्था को खड़ा करने के लिए ,…जमीन, बिल्डिंग, कर्मचारी वगैरह भी लगेंगे वो कैसे ?
इस पर मेरे दो सुझाव है ,…
पहला हम किसानो को कूपन (जैसे sudekso कूपन) जिनको देकर किसान खुले बाजार में कोई भी सामान टैक्स फ्री ले सकती है इससे सरकार को किसी बिल्डिंग (परिसर) कर्मचारी इत्यादि का खर्च नहीं पड़ेगा।
तकरीबन हर जगह किसानो के लिए सोसाइटी होती है - जहाँ से उसे बीज - खाद इत्यादि मिलता है ,.... वहीँ से किसानो को कूपन दिए जा सकते है

कूपन का तरीका मात्र एक सुझाव है ,....आप सोचेंगे तो बेहतर और आसान तरीके निकालेंगे ,....

आप से अनुरोध है - इस मुद्दे को देश के पटल पर जरूर रखे - क्योंकि आज नहीं तो कल ,....कोई ना कोई कुछ ऐसा उठायेगा जरूर ,....

Friday, November 14, 2014

वाह रे वाह पलटासन करती, यू-टर्न सरकार।

(i)
चुनाव से पहले FDI का, किया था बहिष्कार,
संसद भवन में मचा रखे थे, भीषण हाहाकार,
सत्ता पाकर करने लगे, FDI की जयजयकार,
वाह रे वाह पलटासन करती, यू-टर्न सरकार।
(ii)
चुनाव से पहले पाकिस्तान पर, बयान धुँआधार,
छाती पीट- पीटकर माँग रहे थे, बदला वारंवार ,
सत्ता पाकर हाफिज़, नवाज़, हो गए पक्के यार।
एक बार फिर भाग खड़ी हुई, यू-टर्न सरकार।

(iii)
चुनाव से पहले धारा 370 को जो देते थे नकार,
सत्ता पाकर फौरन हो गए बिलकुल निर्विकार,
अलगाववादी पार्टी के साथ बढ़ा रहे हैं सरोकार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई, यू-टर्न सरकार।
(iv)
चुनाव से पहले दामादश्री का दिखता भ्रष्टाचार,
गला फाड़कर कह रहे थे- हो रहा घोर अनाचार,
सत्ता पाकर बना लिये हैं दामादश्री को रिश्तेदार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई, यू-टर्न सरकार।
(v)
चुनाव से पहले महँगाई पर निकालते आँसु के धार,
आम आदमी की खस्ता हालत का लगाते थे गुहार,
सत्ता पाकर रेल किराया में इजाफा कर दिये यार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई, यू-टर्न सरकार।
(vi)
चुनाव से पहले काले धन के बहुत दिये समाचार,
वापस लाकर जनता को देने के वादे किये हजार,
सत्ता पाकर कह रहे हैं – हमें कुछ नहीं पता है यार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई यू-टर्न सरकार।
(vii)
चुनाव से पहले आधार कार्ड को फ्राड देते थे करार,
चिल्लाकर कह रहे थे बंगलादेशी पा रहे हैं आधार,
सत्ता पाकर कह रहे हैं – आधार ही तो है चमत्कार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई यू-टर्न सरकार।
(viii)
चुनाव से पहले हेण्डरसन ब्रूक्स था बड़ा हथियार,
रिपोर्ट सार्वजनिक करने की माँग किये लगातार,
सत्ता पाकर सार्वजनिक करने से कर रहे इन्कार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई यू-टर्न सरकार।
(ix)
चुनाव से पहले स्विस बैंक का खूब किये थे प्रचार,
नेता, बाबा, बुद्धिजीवी, सबने भौंका था बार बार,
सत्ता पाकर दुम दबाकर, बैठ गये सारे होशियार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई यू-टर्न सरकार।
(x)
चुनाव से पहले सिक्ख पीड़ीतों पर खूब थे उदार,
फर्जी मुआवजा का ऐलान कर, खूब किये प्रचार,
देने की जब बारी आई तो, साफ मुकर गये यार,
एक बार फिर भाग खड़ी हुई यू-टर्न सरकार।