दोस्तों,
ये सन्देश "आप" के उन तथाकथित अंधभक्तों के लिए जिन्हें पार्टी का हर फैसला मंजूर है चाहे वो गलत भी क्यों ना हो.
आज आन्दोलन से निकली पार्टी के इतने बुरे दिन आ गए कि अब हमें कांग्रेस के लोगों को राज्यसभा भेजना पड़ रहा है "आप" की तरफ से ?
कहाँ थे ये गुप्ता जी बंधु जब इस मुल्क का आम आदमी सड़कों पर पुलिस की लाठियां खा रहा था और एक नए राजनैतिक विकल्प के लिए सड़कों पर गलियों की धूल फांक रहा था ?
जिन्हें हटाने, जिन्हें बदलने , जिन्हें सजा दिलवाने के लिए हम दिन रात एक थे आज उन्ही को सर माथे पर बैठा राज्यसभा भेजा जा रहा है.
और जो पार्टी समर्थक और कार्यकर्ता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं उन्हें ही कुछ चापलूस "गद्दार" कह रहे हैं और कहते हैं कि पार्टी छोड़ दो !!
इन अंधभक्तों की रीढ़ की हड्डियों का पानी खत्म हो गया पर हमारा नही।
प्रश्न पहले भी करते थे और आगे भी करेंगें। आखिर प्रश्न पूछना भी तो इस मुल्क में अन्ना और अरविंद ने ही तो सिखाया था।
अगर आंखें मूंद कर नेताओं के गलत फैसले मान लेना ही पार्टी से वफादारी है तो फ़िर कांग्रेसियों और भाजपाइयों से बड़ा वफादार इस मुल्क में कौन है ? क्या हम इनसे भी दो कदम आगे जाना चाहते हैं चाटुकारिता में ?
तुम लोगो की हैसियत क्या है जो प्रश्न उठाने वालों को कह रहे हो कि या तो चुप रहो तो पार्टी छोड़ो।
क्यों भाई, क्यों छोडें ? ये पार्टी किसी के बाप की थोड़े ही है ???????
" वजीर ना सही , हम सिर्फ प्यादे ही सही,
पर खेल में औकात सिर्फ तुम्हारी थोड़ी ही है
वो कहते हैं हमें कि चुप रहो या छोड़ दो इसे,
क्यों भाई, मुंह में जुबान किसी और की थोडी ही है,
हमारी थी, हमारी है और सदा हमारी ही रहेगी,
कहदो उनसे कि किसी के बाप की ये "आप" थोडी ही है."
डॉ राजेश गर्ग.
ये सन्देश "आप" के उन तथाकथित अंधभक्तों के लिए जिन्हें पार्टी का हर फैसला मंजूर है चाहे वो गलत भी क्यों ना हो.
आज आन्दोलन से निकली पार्टी के इतने बुरे दिन आ गए कि अब हमें कांग्रेस के लोगों को राज्यसभा भेजना पड़ रहा है "आप" की तरफ से ?
कहाँ थे ये गुप्ता जी बंधु जब इस मुल्क का आम आदमी सड़कों पर पुलिस की लाठियां खा रहा था और एक नए राजनैतिक विकल्प के लिए सड़कों पर गलियों की धूल फांक रहा था ?
जिन्हें हटाने, जिन्हें बदलने , जिन्हें सजा दिलवाने के लिए हम दिन रात एक थे आज उन्ही को सर माथे पर बैठा राज्यसभा भेजा जा रहा है.
और जो पार्टी समर्थक और कार्यकर्ता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं उन्हें ही कुछ चापलूस "गद्दार" कह रहे हैं और कहते हैं कि पार्टी छोड़ दो !!
इन अंधभक्तों की रीढ़ की हड्डियों का पानी खत्म हो गया पर हमारा नही।
प्रश्न पहले भी करते थे और आगे भी करेंगें। आखिर प्रश्न पूछना भी तो इस मुल्क में अन्ना और अरविंद ने ही तो सिखाया था।
अगर आंखें मूंद कर नेताओं के गलत फैसले मान लेना ही पार्टी से वफादारी है तो फ़िर कांग्रेसियों और भाजपाइयों से बड़ा वफादार इस मुल्क में कौन है ? क्या हम इनसे भी दो कदम आगे जाना चाहते हैं चाटुकारिता में ?
तुम लोगो की हैसियत क्या है जो प्रश्न उठाने वालों को कह रहे हो कि या तो चुप रहो तो पार्टी छोड़ो।
क्यों भाई, क्यों छोडें ? ये पार्टी किसी के बाप की थोड़े ही है ???????
" वजीर ना सही , हम सिर्फ प्यादे ही सही,
पर खेल में औकात सिर्फ तुम्हारी थोड़ी ही है
वो कहते हैं हमें कि चुप रहो या छोड़ दो इसे,
क्यों भाई, मुंह में जुबान किसी और की थोडी ही है,
हमारी थी, हमारी है और सदा हमारी ही रहेगी,
कहदो उनसे कि किसी के बाप की ये "आप" थोडी ही है."
डॉ राजेश गर्ग.
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