मै, एक आम आदमी |
महंगाई और भ्रटाचार, से लाचार ||
एक दिन मिला मुझे रोजगार ||
एक नेता का चमचा आया,
और मुझे 100 का नोट दिखाया |
मै झट हो गया रैली, को तैयार ||
जेब में थे पैसे कम,
सो दूर हो गए कुर्सी से हम |
तभी एक ठूंठ (सुखा पेड़) नज़र आया,
और हमने उस पर, आसन जमाया ||
तभी पुलिस का रेला आया,
और पीछे से, नेता ने हाथ लहराया |
ठंडा पड़ा माहौल, आचानक गरमाया ||
न जाने, ये सब देख,
ये ठूंठ क्योँ शरमाया |
मैंने पूंछा, क्या हो गया भाई,
आखिर तुम्हें, क्योँ शर्म आई ||
वो बोला,
फिर एक नेता आया है |
तुम्हारे दुःख, तुम्ही को बताएगा |
और तुम्हीं से, वोट ले जायेगा ||
आज 100 , देगा ............................कल 500 , वसूलेगा ||
करने को घोटाला,
मुझ ठूंठ को, पेड़ बताएगा ।
और 10 रुपये , का पानी लाख में डलवायेगा ||
में तो ठहरा, ठूंठ,
ठूंठ , ही रह जाऊँगा |
पर वो सामने खड़ा पेड़,
बिन पानी के मर जायेगा ||
मैं, शर्मिंदा हूँ............................... क्यूंकि मैं ठूंठ हूँ |
कुछ कर नहीं सकता ||
छोड़, तू भी तो आम आदमी है...........क्या कर पायेगा |
फिर 100 रुपये में, किसी रैली में बिक जायगा ||
और फिर से, मुझ ठूंठ को सिंचवायेगा ||
ठूंठ आगे बोला, चल छोड़, ये बता.......
सुना है, अरविन्द भी पार्टी बनायेगा |
और कहता है, ईमानदारी से चलायेगा ||
तो क्या, ............................कभी वो भी रैली कर पायेगा |
और क्या, तू बिना 100 रुपये के आएगा ||
क्या वो, पेड़ को पेड़ |
और ठूंठ को ठूंठ बतायेगा ||
यदि उत्तर है - हाँ
तो अब, हर अन्ना, बजाय दिल्ली में अनशन के |
आराम से, अपने गाँव में ......गन्ना खायेगा ||
ठूंठ, बात कह गया बड़ी |
चोट सीधे, दिल पर लगी ||
खाता हूँ कसम, अब 100 रुपये में .....रैली में नहीं आऊँगा |
और वोट, उसी को..............जो ठूंठ को ठूंठ और पेड़ को पेड़ कह पायेगा ||
-----------एक आम आदमी द्वारा -----------दूसरे आम आदमी को समर्पित.
--------नागेन्द्र शुक्ल
महंगाई और भ्रटाचार, से लाचार ||
एक दिन मिला मुझे रोजगार ||
एक नेता का चमचा आया,
और मुझे 100 का नोट दिखाया |
मै झट हो गया रैली, को तैयार ||
जेब में थे पैसे कम,
सो दूर हो गए कुर्सी से हम |
तभी एक ठूंठ (सुखा पेड़) नज़र आया,
और हमने उस पर, आसन जमाया ||
तभी पुलिस का रेला आया,
और पीछे से, नेता ने हाथ लहराया |
ठंडा पड़ा माहौल, आचानक गरमाया ||
न जाने, ये सब देख,
ये ठूंठ क्योँ शरमाया |
मैंने पूंछा, क्या हो गया भाई,
आखिर तुम्हें, क्योँ शर्म आई ||
वो बोला,
फिर एक नेता आया है |
तुम्हारे दुःख, तुम्ही को बताएगा |
और तुम्हीं से, वोट ले जायेगा ||
आज 100 , देगा ............................कल 500 , वसूलेगा ||
करने को घोटाला,
मुझ ठूंठ को, पेड़ बताएगा ।
और 10 रुपये , का पानी लाख में डलवायेगा ||
में तो ठहरा, ठूंठ,
ठूंठ , ही रह जाऊँगा |
पर वो सामने खड़ा पेड़,
बिन पानी के मर जायेगा ||
मैं, शर्मिंदा हूँ............................... क्यूंकि मैं ठूंठ हूँ |
कुछ कर नहीं सकता ||
छोड़, तू भी तो आम आदमी है...........क्या कर पायेगा |
फिर 100 रुपये में, किसी रैली में बिक जायगा ||
और फिर से, मुझ ठूंठ को सिंचवायेगा ||
ठूंठ आगे बोला, चल छोड़, ये बता.......
सुना है, अरविन्द भी पार्टी बनायेगा |
और कहता है, ईमानदारी से चलायेगा ||
तो क्या, ............................कभी वो भी रैली कर पायेगा |
और क्या, तू बिना 100 रुपये के आएगा ||
क्या वो, पेड़ को पेड़ |
और ठूंठ को ठूंठ बतायेगा ||
यदि उत्तर है - हाँ
तो अब, हर अन्ना, बजाय दिल्ली में अनशन के |
आराम से, अपने गाँव में ......गन्ना खायेगा ||
ठूंठ, बात कह गया बड़ी |
चोट सीधे, दिल पर लगी ||
खाता हूँ कसम, अब 100 रुपये में .....रैली में नहीं आऊँगा |
और वोट, उसी को..............जो ठूंठ को ठूंठ और पेड़ को पेड़ कह पायेगा ||
-----------एक आम आदमी द्वारा -----------दूसरे आम आदमी को समर्पित.
--------नागेन्द्र शुक्ल
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