Saturday, August 31, 2013

#Satyagraha4AAP Promotion Content#2



अभी अभी "सत्याग्रह" फिल्म देखकर आ रहे हैं ना....क्यों कैसी लगी फिल्म ? अच्छा लगता है ना जब कोई भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ लड़ता है- अनशन करता है, सडकों पर उतरता है, पुलिस की लाठियां खाता है, पानी की बौछारें झेलता है, भूखा रहता है, दर्द सहता है...
आपको लगता होगा कि काश असल जिन्दगी में भी ऐसा हो पता..काश कोई भ्रष्टाचार, आतंक, आत्याचार, असमानता, अज्ञानता, अन्याय, बेरोज़गारी, बलात्कार, वंशवाद, भाई-भतीजावाद, गुंडागर्दी, अव्यवस्था, गंदगी , अँधेरे के खिलाफ आगे बढ़कर सारी सड़ी-गली व्यवस्था को बदल देता..
अगर आपको ऐसा लगता है तो फिर आप किसके डर से अनजान बने हुए हैं ? क्या आपको नहीं लगता कि इस फिल्म के किरदार तो बहुत पहले ही आपकी और हमारी असल जिन्दगी में बहुत पहले से ही उतर चुके हैं- कोई अन्ना बनकर, कोई अरविन्द नानकर, कोई मनीष बनकर, कोई गोपाल राय बनकर, कोई कुमार विश्वास बनकर, कोई शाजिया बनकर तो कोई संजय सिंह बनकर..
ये सब "आम आदमी" उन्ही सुनहरे सपनों को तो साकार करने के लिए अपना आज और आने वाला कल तक दांव पर लगाये बैठे हैं जिन सपनों को आप फिल्म के परदे पर साकार होते हुए देखने की तमन्ना लिए तालियाँ बजाते हुए आशावान थे..
दोस्तों, ये मौका फिर नहीं आएगा...इतिहास में बहुत विरले ही ऐसा होता है कि फिल्म का "नायक" वास्तविक "सत्याग्रह" करते हुए किसी मुल्क का नया इतिहास रचने के लिए परदे से



उतर कर असल जिन्दगी में सड़क पर उतरता है...ये मौका आप हाथ से मत गँवा देना- ना जाने फिर कितने सालों बाद फिर कोई "सत्याग्रह" करने की हिम्मत कर सके..
अपने असल जिन्दगी के नायकों का साथ दीजिये, उनका हौसला बढाइये और उनकी आवाज़ में आवाज़ मिलाकर "सत्याग्रह" को गूंगी-बहरी मौजूदा व्यवस्था को जगाया जा सके..किसी महान रचनाकार ने इसी किस्म के "सत्याग्रह" की अवधारणा को सोचकर लिखा होगा-
"मिटटी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता , अब इससे ज्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता , मेरी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलकर तो देख, फिर देख कि इस मुल्क में क्या हो नहीं सकता "
तो आ रहे हैं ना आप असल जिन्दगी के "सत्याग्रह" के यज्ञ में अपने हिस्से की आहुति डालने..देश आपका, वोट आपका और फैसला भी आपका !!
जय हिन्द !! वन्दे मातरम !! भारत माता की जय !!
निकलो बाहर इस भ्रामक विकास से और जागो, अपनी आँखे मलो और देखो फिर करो जो सही समझ आये। http://www.aamaadmiparty.org/
http://www.facebook.com/AamAadmiParty http://www.facebook.com/FinalWarAgainstCorruption http://www.facebook.com/WeWantArvindKejriwalAsIndianPm http://www.facebook.com/AamaadmipartyGurgaon?ref=hl
ये कागज़ हमारे और आपके पैसे का है इसे नष्ट ना करे, पढ़े और पढ़ने के बाद दूसरे को दे

#Satyagraha4AAP Promotion Content#1

दोस्त, सवाल ये नहीं है की हम खुश है या नहीं? हम सही है या गलत, सवाल ये भी नहीं की हमारे देश की राजनीती और व्यवस्था कैसी है? आज सवाल ये है की इसे ऐसा किया किसने?...एक बार सोंचने की जरुरत है की दोषी कौन है, दोषी हम सब है और दोषी हमारा डर है। जाहिर सी बात है की जब अच्छे और सच्चे लोग अपने घर की कुंडी बंद कर डरे डरे अन्दर रहेंगे तो सड़क पर सिर्फ गुंडों का ही राज होगा।
दोस्त, सवाल ये है कि अगर सड़क पर हममे या आपमें से किसी के साथ कोई दुर्घटना हो जाए तो हमारी हिम्मत नहीं पड़ती की हम उसकी मदद करे। इस ही तरह हमारी इच्छा तो होती है पर हमारी हिम्मत नहीं पड़ती की गलत को गलत कह सके। क्यों? क्योंकि इस पूरी व्यवस्था पर सिर्फ भ्रष्ट लोग हावी हो चुके है और चुप रह कर कहीं ना कहीं हम भी भ्रष्टाचार का हिस्सा है, हमारी चुप्पी ही देती है बढ़ावा इस भ्रष्टाचार को।
देश की व्यवस्था ऐसी दिखाई देती है जैसे हम अपने खेतो, अपने घरो में किसी और के लिए काम करते रहेंगे और हमारे ही उपजाये आनाज को आटा बना कर कोई और एक्सपोर्ट करेगा, फिर उस ही आटे की बनी हुई रोटी इम्पोर्ट करेगा मुनाफा कमाएगा और इस बात पर खुश रहेंगे की बच्चे को स्कूल में खाना सरकार देती है और हमें पेड़ की छाँव में बैठने के इतने पैसे मिलेंगे की हम जिन्दा तो रहे पर जी ना सके।
नहीं तो ऐसा कैसे हो गया की हम व्यापार के नाम पर अपने देश में बना सामान नहीं अपनी मेहनत और पसीने को बेंचने लगे ?
कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है जो निष्क्रिय कर रहा है हमारी सोंच को, समाज को, और आत्मा को। ऐसे हालत में हम क्या भविष्य देंगे अपनी आने वाली पीढ़ी को? जबकि हम सभी काम सिर्फ इस लिए करते है की जी सके और आने वाली पीढ़ी को कुछ दे सके ....हम ये नहीं कहते की यही सही वो सही है, पर जो सही है उसकी खोज खुद करो और जो गलत है उसे बदलने के लिए लड़ो।
निकलो बाहर इस भ्रामक विकास से और जागो, अपनी आँखे मलो और देखो फिर करो जो सही समझ आये। http://www.aamaadmiparty.org/
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(गुडगाँव में कार्यालय और बाँकी सभी संपर्क सूत्र उपलब्ध है इस पेज पर)
ऐसा नहीं की इन सब का कोई समाधान नहीं है, है जरुर है Janlokpal, Right to Reject, Right to Recall, Citizen Charter समाधान कैसे? कैसा होना चाहिए लोकतंत्र कैसी हो व्यवस्था इसके लिए पढ़िए "स्वराज".
ये कागज़ हमारे और आपके पैसे का है इसे नष्ट ना करे, पढ़े और पढ़ने के बाद दूसरे को दे

Friday, August 30, 2013

हमारा धर्म क्या है ये जानने की फुर्सत ही नहीं हमारे पास ...

कई बार ऐसा नहीं लगता की हम इतने व्यस्त हो गए है की हमारा धर्म क्या है ये जानने की फुर्सत ही नहीं हमारे पास ....इसलिए ये काम दूसरों पर छोड़ दिया है .....जो उसने बता दिया ...बस वही धर्म ....या जिसमे कोई स्वार्थ सिद्ध हो जाए वही धर्म है ....साधारण रूप से ऐसा मान लेते है ...ऐसा नहीं की सब मेरी तरह ही नालायक है ...बहुत सारे अच्छे भी है ....जो सोंचते है ....
आज गलती से हमने भी सोंचने की कोशिश की ...तो हमें जो पता चला वो ये की ....
धर्म सामुदायिक नहीं होता है .....धर्म व्यक्तिगत होता है .....
जिसके कर्म अच्छे .....उसका धर्म अच्छा ...और कर्म बुरे ..तो धर्म बुरा .....
धर्म के बारे में मेरा मानना है की .....
वेदकाल में सिर्फ दो ही धर्म थे .....सुर और असुर ....देवता और दानव ....
अब जिनके कर्म अच्छे थे ....वो देवता ....और जिनके बुरे वो दानव ....
अब हिन्दू धर्म में तो जिंदगी से जुडी हर चीज़ के लिए एक भगवान् है ...जैसे ज्ञान के लिए सरस्वती माता ....हवा के लिए वायु देव ....पानी के लिए इंद्रा देव ....
तो मुझे लगता है की ...उस काल में कुछ लोगो के समूह होंगे ...जिनके जिम्मे ये काम रहे होंगे ....और इनके नायक जो थे ...वो उस काम के, भगवान् के नाम से जाने जाते है ....
तो मेरी समझ से धर्म कुछ व्यक्तिगत सा लगता है .....पता नहीं ...पर एक विचार तो है ????.....
और ब्रम्हा विष्णु महेश ....राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री और गृह मंत्री रहे होंगे ...
लोकतान्त्रिक भी है हिन्दू धर्म ....बस जब भगवान् थे तब भ्रष्टाचार नहीं था ....फिर सतयुग से कलयुग तक ...
और हमारे देश की व्यवस्था में नेता भी ....लालबहादुर, पटेल जी से होते हुई ....कहाँ तक पहुँच गयी ...भ्रष्टाचार बढता गया ....
जो व्यवस्था को सुधार वापस लालबहादुर और पटेल तक ले जाने की कोशिश ना करे ....वो देश का हित नहीं कर सकता ....


पुनर्जन्म और कर्मो के आधार पर फल ....ये इसी ओर इंगित करते है ...कैसे?,..बस थोडा सोंचने की जरुरत है ...

और हिन्दू धर्म का तो स्वरुप ही बदलाव रहा है ......श्री राम से लेकर ....श्री कृष्ण जी तक .....धर्म हमेशा वही रहा ...मानवता का विकास ....सत्य की रक्षा ...पर आदर्श थोड़े बदलते गए ....स्वामी विवेकानंद भी हिन्दू धर्म ही है ....और आर्यसमाज भी ....गुरुनानक देव जी भी ....और भी बहुत सारे .....और मुझे विस्वास है की ...सभी,......
उसी सनातन हिन्दू धर्म का ही हिस्सा है ......इसीलिए ये सनातन था .....सनातन है ......
और सनातन का अर्थ होता है ...जो हमेशा रहे .....और हमेशा वही रहता है ..जो बदलता रहता है ....शरीर बदल तो सकता है ...पर आत्मा वही रहती है ....और आत्मा ...आत्मा तो पमात्मा का ही हिस्सा है ....
वास्तव में ....गीता...बात ही निराली है .
गीता सिर्फ ग्रन्थ नहीं सागर है ...मथने पर सब मिलेगा ...किसे क्या लेना है ...वो ले ले .....
...हर बात का जवाब है ..बस समझना आता हो ....गीता जी ...कर्म ...धर्म ...और ज्ञान ...तीनो है ....
अंत में फिर यही बोलूँगा .....धर्म व्यक्तिगत है मेरी समझ से ....सामुदायिक नहीं ......
और त्यौहार धर्म में ..सामुदायिक तत्व देने के लिए है ...

माफ़ करना बहस मत करना ......क्योंकि धर्म तर्क से भी ऊपर होता है .....मेरा तो पक्का ...धर्म वो जो करो ....जो मानो ....
जय श्री कृष्ण .....
नन्द के आनंद भयो,....जय कन्हैया लाल की

हे ब्रज में आनंद भयो,....जय यशोदा लाल की
नन्द के आनंद भयो,...जय कन्हैया लाल की
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ......गौरवान्वित करने वाला त्यौहार है ये ......शुभ जन्माष्टमी .....नागेन्द्र शुक्ल


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राजनीती अच्छे लोगों के लिए है ही नहीं....अ

दोस्तों,

कुछ लोगों का कहना है कि राजनीती अच्छे लोगों के लिए है ही नहीं....अच्छे लोगों का राजनीती में क्या काम ? और इसी तर्क को सामने रखकर वो अरविन्द केजरीवाल और साथियों द्वारा "आम आदमी पार्टी " बना कर राजनीती में आने के फैसले के खिलाफ भी रहे....

इनमे से बहुत से लोग ऐसे जो यहाँ तक कहते हैं कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्हें अरविन्द और उनकी नीतियाँ बहुत पसंद है पर एक राजनेता के तौर पर वो उन्हें नापसंद करते हैं क्योंकि राजनीती अच्छी चीज़ नहीं है और उनके लिए अरविन्द भी राजनीती में आते ही "बुरे" बन गए हैं .......

इन लोगों से हम एक ही बात पूछना चाहते हैं कि क्या राजीनीति सिर्फ बुरे का पर्याय है ?

क्या राजनीति का मतलब सिर्फ लूट, भ्रष्टाचार, दमन और अत्याचार है ?
क्या राजनीति का मतलब सिर्फ सत्ता की मलाई चाटना भर रह गया है ?
क्या राजनीती का मतलब सिर्फ पैसे और ताक़त के बलबूते पर जनमानस को दबाना है ?
क्या राजनीती का मतलब सिर्फ संसद में वोटों की खरीद-फरोख्त कर कुर्सी बचाना है ?
क्या राजनीती का मतलब कुछ परिवारों की वंशवाद की जहरीली बेल का पोषण है ?
क्या राजनीती का मतलब अवैध तरीके से धन, जमीं और सम्पति की अनुचित लूट है ?

नहीं..कदापि नहीं- हमारा ये मानना है कि राजनीति का अर्थ होता है- बिना किसी भी लालच के पूरे जनमानस के भले को सोचते हुए सर्वसम्मति से काल-खंड के व्यवहार के अनुसार, कानून-सम्मत, नीति-परक, न्यायपूर्ण और लोकहितकारी निर्णय लेते रहना...

राजनीती- यह एक सतत प्रक्रिया है....इसमें लगातार बदलाव होते रहते हैं....असल में इस परिभाषा को आज की गन्दी राजनीति ने इतना बदनाम कर दिया है कि अब अच्छी राजनीति के बारे में हम सोचते तक नहीं हैं......

तो फिर क्यों नहीं अच्छे लोग राजनीती में आते ? क्या एक छोटे से जख्म को नासूर बन जाने दिया जाये? क्या इस मुल्क के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नही बनती? क्या जिस सरजमीं को हम "माँ" कहते और मानते है तो ये हमारा फ़र्ज़ नहीं बन जाता कि हम उसकी अस्मिता, गौरव, वैभव और शान को नुक्सान पहुँचाने वाले किसी भी नापाक हाथ तो रोक लें ? क्या अच्छाई पर बुराई को राज करने दिया जाये ?

क्या करोड़ों लोगों को अब भी भूखा ही सोने दें ? क्या लाचार बच्चियों और महिलायों को यूँ ही हवास का शिकार होने दें ? क्या यूँ ही करोड़ों लोगों को खुले आसमान के नीचे ठण्ड और गर्म लू से तड़प तड़प कर मरने दें? क्या यूँ ही अपने सैनिकों के सिर काटने दें ? क्या यूँ ही बिना हस्पताल के इलाज़ के लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने दें ? क्या यूँ ही बिना अच्छी सड़क, बिजली, पानी , स्कूल के करोड़ों लागों को बस जानवरों की तरह जीने दें ?

आखिर कब तक सिर्फ साल में एक बार दशहरा के दिन इस मुल्क के अच्छे लोग " बुरे पर अच्छाई की", असत्य पर सत्य की", अधर्म पर धर्म की" जीत के इतिहास को याद कर खुश होते रहेंगे या कभी ऐसा भी होगा कि वो लोग खुद भी एक नया इतिहास बनायेंगे ?

क्यों नहीं इस आम जनता में से ही कोई नया भगवान राम या कृष्ण सा अवतार पैदा होकर अन्याय, अधर्म, असत्य, असमानता, अत्याचार का नाश करता ? क्यों नहीं अब देश में अच्छे लोग आगे बढ़कर हनुमान जी और सुग्रीव की तरह इस नए अवतार का साथ देते ताकि पाप की लंका को नेस्तनाबूद किया जा सके ?

इन्ही किस्म की भावनाओं के साथ "आम आदमी पार्टी" के मंच का निर्माण किया गया ताकि राजनीती से नफरत करने वाले अच्छे लोग भी राजनीती में आकर इसे पुनर्भाषित कर सकें.....तो फिर इसका विरोध क्यों ?

क्या समय के हिसाब से लोकहितकारी निर्णय लेना कोई जुर्म है ?
क्या विचारों की सीढियाँ चढ़ते हुए अपने दृष्टि के आयाम को नयी ऊंचाई देना गलत है ?
क्या किसी कल्याणकारी विचार को नई दशा और दिशा देना अपराध है ?

क्या इलाज करते हुए डॉक्टर अपना निर्णय बदल कर कई बार सिर्फ दवाइयों की जगह एकदम से आप्रेशन का निर्णय नहीं लेते ? क्या भगवान कृष्ण को अपने निर्णय बदलने की कूटनीति के कारण " रणछोड" नहीं कहा जाता ? क्या कौटिल्य ( चाणक्य) ने नहीं कहा था कि अगर मेरे देश के हित के बीच में आता है तो फिर मैं "साम-दाम-दंड भेद " से उस बाधा को पार करूँगा ?

अब सिर्फ राजनीती की आलोचना करने के कुछ नहीं होगा...अब आँखें बंद करके बैठने से कुछ नहीं होने वाला....या तो अच्छे लोग राजनीती में आकर इसमें आमूल-चूल परिवर्तन करने के लिए हाथ बढाएं या फिर देश और समाज के हालातों पर शिकायत करना छोड़ दें और चुप-चाप अपनी चाय पीते रहे....अब आप या तो सत्य के साथ हैं या उसके खिलाफ- अब बीच का कोई रास्ता नहीं बचा है....


अगर हम एक बेहतर कल चाहते हैं तो इस मुल्क के हर अच्छे इंसान को इस समाज की गंदगी दूर करने में अपना योगदान देना ही होगा....

और अपना योगदान देते हुए अपने जेहन में किसी महान शायर की ये दो पंक्तियाँ हमेशा याद रखियेगा-----

"सूरज तो नहीं हूँ, महज एक अदना सा दिया हूँ मैं,
जितनी मेरी बिसात है, उतनी रौशनी कर रहा हूँ मैं ".....

जय हिंद !! वंदे मातरम !! भारत माता की जय !!

डॉ राजेश गर्ग.

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चोर ki शिकायत करने जाओ,.. तो डकैत मिलते है ...

अजीब हालात है ....चोर शिकायत करने जाओ,.. तो डकैत मिलते है ...
दिल्ली कि एक प्राइवेट बस में मैं और मेरा दोस्त चढ़ते है ...थोड़ी ही दूर जा कर पता चलता है की जेब से मोबाईल चुरा लिया गया ...चुरा क्या छीन लिया गया ...इधर हमने शोर किया आवाज ऊँची की ...उधर चोर ने इशारा,....और तेज़ी से चलती बस थोड़ी देर के लिए धीमी होती है ....वो चोर चलती बस से कूद जाता है ...और बस वापस रफ़्तार पकड़ लेती है ...
और हम बस के दरवाजे पर लटके कूदने की हिम्मत जुटाते और चिल्लाते है ...पर बस धीमे होने की जगह और तेज़ होती है ...फिर करीब 3/4 सौ मीटर के बाद रोक दी जाती है ....
बस के धीमे होते ही ...कूदे ...पीछे दौड़े ...और बस अपने रास्ते चल आँखों से ओझल .....
इतनी देर में ना ही चोर ....ना ही चोर का आता पता ...कहाँ गया ....
साफ़ समझ आता है ...की बस का स्टाफ और चोर की मिलीभगत है ...गुस्सा आता है ...और सोंचते है की पुलिस में शिकायत करते है ...100 पर फोन किया ...फिर 1 घंटे से ज्यादा रात के समय ..सुनसान सड़क पर इंतज़ार ....पर देश की व्यवस्था देख ख़ुशी होती है ...और आखिर पुलिस आती है ...
अब शुरू होता है ...शिकायत दर्ज करने का नाटक ...
अजीब अजीब सवाल ....तुम पहचानते हो उस चोर को ...जवाब हाँ अच्छी तरह से ...
पुलिस ...सोंच लो ..नौकरी पेशे वाले आदमी हो ...रोज़ रोज़ थाने आना पड़ेगा ...
जवाब अरे सर वो बस का स्टाफ भी मिला है .....पुलिस ...बकवास करते हो कैसे कह सकते हो ..बस का नंबर क्या था ...नंबर भी बता दिया ...
पुलिस तो शिकायत में बस के लोगो का भी नाम लिखवाना चाहते हो ...जवाब हाँ ....पुलिस सोंच लो रोज़ आना जाना है इस सडक पर ...FIR करवाओगे तो ....नौकरी छोड़ रोज़ थाने फिर कोर्ट कचहरी के चक्कर ....कर पायेगा इतना ...
सर कोई नहीं ...पर आप चोर को तो पकड़ो ...
पुलिस एक बार फिर सोंच लो ...एक बार लिख गयी तो परेशान हो जाओगे ....
सर आप रिपोर्ट लिखो ...पुलिस अरे कितने का मोबाईल था ..उससे ज्यादा तो आने जाने में लग जायेंगे ...
अरे सर बस अभी ...३/4 स्टॉप आगे ही होगी ...अभी क्यों नहीं चलते ...बस वालो से पूंछो उनको सब पता है सर ....पुलिस पागल है क्या ...उधर तो नॉएडा है ...उत्तर प्रदेश ...हम दिल्ली पुलिस है ...
अरे सर अजीब बात है ....बस नॉएडा से दिल्ली आ जा सकती है ..पर पुलिस नहीं ...
पुलिस .....चुप ...अब एकदम चुप ...हमें कानून बताता है ...
सर चलो आप रिपोर्ट तो लिखो .....नहीं लिखते ....मोबाईल चोरी हो गया ....
सर चोरी नहीं हुआ ..उसने भरी बस में छीना है ..चाकू भी दिखाई जब हाँथ पकड़ा था ...
पुलिस ...अभी तू कह रहा था की चोरी हुआ है ...अब कह रहा है की छीना है ...बंद कर बकवास ...
अरे सर आप रिपोर्ट तो लिख लो ......
और ये क्या गाडी स्टार्ट ...और चल दी ....
अरे सर रिपोर्ट ....सुबह थाने में जा कर लिखवा देना .....
फिर सड़क सुनसान रात का अँधेरा ....चल दिए पैदल घर की ओर ....
सुबह फिर हिम्मत जुटाई ...थाने पहुँचे ...सर रिपोर्ट लिखवानी है ....
इंतज़ार ..इंतज़ार घंटो का ..फिर सवाल ...कहाँ हुआ ये सब ...साहब मयूर विहार वाली रोड ...अच्छा ...
फिर इधर क्यों आया है ...मयूर विहार थाने जा ....
अरे सर वो कल 100 नंबर पर फोन किया था ...पुलिस आयी थी ...पर रिपोर्ट नहीं लिखी ...
अच्छा तो अब ...पुलिस की गलती है ...अबे तू चोरी की रिपोर्ट लिखाने आया है या पुलिस की ..भाग ...
अब क्या करता ....ऑफिस से मेनेजर का फोन ...आज छुट्टी क्यों मार ली ...
नहीं सर छुट्टी नहीं ...थोड़ी देर होगी ....
फिर वही धाक के तीन पात ....
समझा दिया सारे दोस्तों ने ....पैसे जोड़ कर मोटर साइकिल ले लो ...बस में तो ये रोज़ रोज़ का चक्कर है ...कहाँ लिखवाओगे मोबाईल चोरी की रिपोर्ट ....बुरे फँसोगे ...परेशान हो जाओगे ....
दो दिन बाद ...वो फिर दिखा बस में ....
पकड़ा ..चिल्लाया ...बस से उतर ...बस के सटाफ के साथ मिल ...काफी पिटाई भी हो गयी ....
100 पर फोन ...फिर वही कहानी ...2 घंटे का इंतज़ार ...फिर मैनेजर का फोन ..ये रोज़ रोज़ लेट आने का चक्कर नहीं चलेगा ...लम्बी चौड़ी डांट ....
दोस्तों ने फिर समझाया ....यार मोटर साइकिल खरीद ले ...बस में तो ऐसा ही रहेगा ....
बस ...बस समझ आ गया ....की जिंदगी चलाने के लिए ..नौकरी जरुरी है ...और उसके समय पर ऑफिस जाना ....
कहाँ ...लिखवा पायेंगे रिपोर्ट ...भूल जाओ की मोबाईल था ..भूल जाओ की मार भी पड़ी थी ....
पैसे जोड़ो ....मोटर साइकिल खरीद लो ...सारी परेशानी हल हो जायेगी ....

पर क्या इस तरह ..मोटर साइकिल खरीद परेशानी हल हो जायेगी ?.....क्या हो सकती है हल परेशानी कुछ भी खरीद ?.....
बस ऐसे ही भागते रहे ..परेशानियों से ....पर भागे कहाँ ...एक परेशानी छोड़ ...दूसरी में फँसते रहे ...
आम आदमी ....आम आदमी की तरह बस भागते रहे ...कभी लड़ने की सोंची पर .....किस से लड़ते ..या यूँ कहे की किस किस से लड़ते ....हाल ये की जब आप बस के गुंडों से पिट रहे तो ....बस में बैठी बांकी सवारी को ....कितना भी बताओ की ये चोर है ...छीना था मोबाईल इन्होने ....पर नहीं ...
मजाल है की बस पर बैठा कोई एक आदमी भी हो ...जिसे ऑफिस जाने की देरी ना हो रही हो ....सबको जल्दी है ...की जल्दी से मारो - पीटो ..कुछ भी करो ..पर बस ..बस जल्दी मेरे स्टॉप तक पहुँचाओ ...देर हो रही है .....
कुछ ऐसे ...हूँ ऐसे क्या ..ये तो कुछ नहीं ...हालत इससे भी बत्तर है ....
चोरी की रिपोर्ट करवाने जाओ तो डकैत मिलते है ......जो रोज़ लुटते है ..उन्हें देर होती है ...जब कोई दूसरा लुटता है ....
बस चल रहा है देश ...चल रही है व्यवस्था ...चल रही जिंदगी यूँ ही लुटते - पिटते - घसीटते ....

ये बात 2006 की है ...तब अरविन्द का तो नाम भी नहीं सुना था ....पर 2013 आते - आते ...और अरविन्द जी का नाम सुनते और समझते ...कुछ तो हिम्मत बंधी है ....ये समझ आया है की ...मोटर साइकिल खरीदने से ..बचोगे नहीं ...हाँ उसमे पर पर किसी दूसरी परेशानी में फंसोगे ...जरुर फँसोगे ....क्यों?....क्योंकि व्यवस्था ही ऐसी है की .....आम आदमी ...आम आदमी एक चूहा है ...जो रोज़ इधर उधर धूमता है शेर बन ...पर बिल्ली ..बिल्लियाँ बैठी है ..घात लगाये ...और इन बिल्ली से बचाने के लिए जो कुत्ते पाले गाये है ....वो बिल्ली से मिल बाँट खा रहे है ..चूहों को ....
पर चूहे ..तो चूहे है ...डरते रहेगे ....कहते रहेंगे की कुछ नहीं हो सकता इस देश का ....
पर नहीं कुछ चूहों ने सोंची है ...बिल्ली से नहीं ..कुत्तो और भेडियों से टकराने की ....इस व्यवस्था को बदलने की ...
रास्ते दो ही है ..या तो निकालो बाहर मकानों से,...जुडो ...और जंग करो बैमानो से ....
या यूँ ही डर - डर कर मोटर साइकिल खरीदते रहो ...
वो मोबाईल था ..कुछ दिन बाद नया आ गया ....

पर वो बहन दामिनी ....जो चली गयी ...वो कैसे वापस आएगी ....क्या है कोई जो कहे नहीं ...अब दामिनी नहीं होने देंगे ...हम लड़ेंगे ....

है एक है जो कह रहा है ...कह नहीं रहा ...लड़ रहा दामिनी, गुडिया और मेरे और तेरे लिए ...पर शायद आपको हमको अभी भी ...मैनेजर का फोन आ रहा ...ऑफिस जल्दी जाना है ...क्योंकि परेशानी से बचने के लिए ...मोटर साइकिल खरीदनी है ...पर मोटर साइकिल खरीद ...कब तक बचोगे मेरे दोस्त .....नागेन्द्र शुक्ल


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Tuesday, August 27, 2013

Gujrat V/s Bihar Development

अभी हाल के दिनों में देख रहा हूँ की बिहार और गुजरात की विकास की तुलना की जाती है और गुजरात को ज्यादा बेहतर बताया जाता है पर पता नही क्यों मझे लगता है की बिहार आज से नही बल्कि शुरू से ही गुजरात से ज्यादा बेहतर रहा है कारण नीचे दे रहा हूँ किसी भी सफल प्रदेस का क्या मापदंड होना चाहिए मै गुजरात और बिहार की तुलना पुरे भारत में कर रहा हूँ ताकि किसी के साथ अन्याय न हो ------1)शिक्षा से लगाव ---आप पुरे भारतके बोर्डिंग स्कूल कोचिंग संस्थान में सर्वे कीजिये ज्यादा विद्यार्थी गुजरात के नही बल्कि बिहार के मिलिंगे२)मेडिकल आप दिल्ली के सभी नामी हॉस्पिटल जैसे एम्स, राम मनोहर लोहिया, सफदरजंग, अपोलो,में सर्वे कीजिये ज्यादा डॉक्टर गुजरात के नही बल्कि बिहार के मिलिंगे३) टेक्नोक्रेट----आप पुरे भारत के प्राइवेट या सरकारी फैक्ट्री जैसे टाटा,बिरला,रिलायंस महिंद्रा विप्रो भारत पेट्रोलियम, हिदुस्तान पेट्रोलियम आदि में इंजिनियर का सर्वे कीजिये आपको गुजरात सेज्यादा बिहार के मिलेंगे4)ब्यूरोक्रेट---आप दिल्ली सचिबालय तथा मंत्रालय में जाकर सर्वे कीजिये ज्यादा आईएएस गुजरात नही बल्कि बिहार के मिलेंगे दिल्ली रास्ट्रीय राजधानी है वंहा के पुलिस कमिशनर गुजरात के कम बिहार के ज्यादा बने है रेलवे में आपको ज्यादा कर्मचारी गुजरात नही बल्कि बिहार के मिलिंगे आजतक देश जितनी भी लड़ाई लड़ी है उनमे बिहार के सैनिको का योगदान गुजरात से ज्यादा रहा है5)कला---- सिने जगत कलाकार गुजरातसे ज्यादा बिहार दिया है6)इतिहास--- गुजरात से ज्यादा नामी स्वतंत्रा सेनानी बिहार के थे जैसे राजेंद्र बाबु सच्चिदानंद सिन्हा आदि भारत का संबिधान दिल्ली के अलावे केवल बिहार आया है हिंदी के ज्यादा नामी कवि और लेखक देश को गुजरात नही बल्कि बिहार दिया है देश के बाहर किसी देश के रास्त्रपति गुजरात के नही बल्कि बिहार के बने थे, देश के नामी खगोलशास्त्री भी बिहार के थे गुजरात के नही विश्व का पहला गणराज्य वैशाली गुजरात ने नही बल्कि बिहार ने दिया था सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त चाणक्य भगवानबुद्ध महावीर गुजरात के नही बल्कि बिहार के थे विश्व का पहला विश्वविदाल्य बिहार ने दिया गुजरात ने नही कितना लिखू सभी क्षेत्र में बिहार गुजरात से आगे था आगे है और आगे रहेगाहाँ एक क्षेत्र है जिसमे बिहार बहुत पीछे है गुजरात से वो है पैसा धन दौलत और भौतिक सुख सुविधा किन्तु ये सफलता का पैमाना नही हो सकता क्योंकि अगरये पैमाना होता अयोध्या से ज्यादा भौतिक सुख लंका के प्रजाको था तथा रावण के पास भगवान राम से ज्यादा धन था किन्तु आदर्श श्री राम रहे न की रावण और आदर्श राज्य अयोध्या है न की लंका,

" सोती प्रजा, मज़े लूटता राजा "

" सोती प्रजा, मज़े लूटता राजा "

एक राजा था जिसकी प्रजा हम
भारतीयों की तरह सोई हुई थी !

बहुत से लोगों ने कोशिश की
प्रजा जग जाए ..
अगर कुछ गलत हो रहा है तो
उसका विरोध करे,
लेकिन प्रजा को कोई फर्क
नहीं पड़ता था !

राजा ने तेल के दाम बढ़ा दिये
प्रजा चुप रही
राजा ने अजीबो गरीब टैक्स
लगाए प्रजा चुप रही
राजा ज़ुल्म करता रहा लेकिन
प्रजा चुप रही

एक दिन राजा के दिमाग मे एक
बात आई उसने एक अच्छे-चौड़े
रास्ते को खुदवा के एक पुल
बनाया ..
जबकि वहां पुल की कतई
ज़रूरत नहीं थी ..
प्रजा फिर भी चुप थी किसी ने
नहीं पूछा के भाई यहा तो किसी
पुल की ज़रूरत नहीं है
आप काहे बना रहे है ?

राजा ने अपने सैनिक उस पुल
पे खड़े करवा दिए और पुल से
गुजरने वाले हर व्यक्ति से टैक्स
लिया जाने लगा फिर भी किसी
ने कोई विरोध नहीं किया !

फिर राजा ने अपने सैनिको को
हुक्म दिया कि जो भी इस पुल
से गुजरे उसको 4 जूते मारे जाए
और एक शिकायत पेटी भी पुल
पर रखवा दी कि किसी को अगर
कोई शिकायत हो तो शिकायत
पेटी मे लिख कर डाल दे लेकिन
प्रजा फिर भी चुप !

राजा रोज़ शिकायत पेटी खोल
कर देखता की शायद किसी ने
कोई विरोध किया हो लेकिन
उसे हमेशा पेटी खाली मिलती !

कुछ दिनो के बाद अचानक एक
एक चिट्ठी मिली ..
राजा खुश हुआ के चलो कम से
कम एक आदमी तो जागा ,,,,,
जब चिट्ठी खोली गयी तो उसमे
लिखा था -

"हुजूर जूते मारने वालों की
संख्या बढ़ा दी जाए ...
हम लोगो को काम पर जाने मे
देरी होती है !

ऐसे हो चुके हैं हम भारतीय . . !"

Jai Hind !